Deshaj Buddha

Author: Lalit Aditya
Edition: 2024, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Deshaj Buddha
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बौद्ध धर्म का आदिवासी संस्कृति और झारखंड से क्या रिश्ता है? क्या बौद्ध सिद्धान्तों के निर्माण में आदिवासी संस्कृति का भी योग रहा है? क्या अतीत ने हमारे लिए ऐसे साक्ष्य छोड़े हैं जो बौद्ध धर्म और आदिवासी संस्कृति के संयोग का संकेत करते हैं? ‘देशज बुद्ध’ ऐसे कई प्रश्नों का तथ्याधारित उत्तर प्रस्तुत करते हुए भारत के प्राचीन इतिहास और संस्कृति की लगभग अज्ञात एक कड़ी को बखूबी हमारे संज्ञान में लाती है। यह एक तथ्य है कि श्रमण-संस्कृतियाँ व्रात्यक्षेत्र में ही पुष्पित-पल्लवित हुई थीं। बौद्ध धर्म भी इसका अपवाद नहीं है। राजकुमार सिद्धार्थ ने इसी वन-प्रान्तर में स्वयं को प्रकृति के प्रति समर्पित किया था और प्रकृति के सन्देश–मध्यम मार्ग–को ज्ञान के रूप में ग्रहण कर सम्बुद्ध हुए। अकारण नहीं कि झारखंड के इटखोरी (चतरा) में राजकुमार सिद्धार्थ के आने की किंवदन्ती के साथ-साथ सन्ताल परगना से लेकर उत्तरी छोटानागपुर, पलामू  और कोल्हान तक हर प्रमंडल में बौद्ध धर्म से जुड़े पुरातात्विक स्थल और अवशेष मिलते हैं। इन सब का उल्लेख करने वाले पहले के कतिपय अध्ययनों के विपरीत इस पुस्तक में झारखंड के बौद्ध स्थलों और अवशेषों का व्यापक सर्वेक्षण और दस्तावेजीकरण किया गया है, जिससे प्रदेश में बौद्ध धर्म के मार्ग और प्रभावों की व्यवस्थित जानकारी मिलती है। पुस्तक का एक महत्वपूर्ण पक्ष है—बौद्ध धर्म पर आदिवासी संस्कृति-परम्पराओं के आरम्भिक प्रभावों का विश्लेषण। इसमें कहा गया है कि बौद्ध धर्म की दीक्षा-प्रक्रिया से लेकर प्रव्रज्या और उपसम्पदा तक पर आदिवासी परम्परा का प्रभाव है। इसी तरह बौद्ध संघ की आचार-संहिता स्पष्टतः आदिवासी जीवनशैली से अभिप्रेरित है। बौद्ध धर्म के सन्दर्भ में आदिवासी संस्कृति के एक महत्तर योगदान को रेखांकित करने वाली एक विचारोत्तेजक कृति!

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 120p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Lalit Aditya

Author: Lalit Aditya

ललित आदित्य

नई पीढ़ी के पुराविदों में अपनी अलग पहचान बना चुके ललित आदित्य का जन्म 25 फरवरी को बोकारो में हुआ था। उन्होंने 2014 में राँची विश्वविद्यालय, राँची से पुरातत्त्वविज्ञान एवं संग्रहालय-विज्ञान में स्नातकोत्तर किया। बाद में राँची विश्वविद्यालय के पुरातत्त्वविज्ञान एवं संग्रहालय-विज्ञान स्कूल में ही अतिथि व्याख्याता के रूप में कार्य किया। 2022 में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा आयोजित ‘युवा पुराविद’ की परीक्षा में पूरे देश में प्रथम स्थान प्राप्त किया। उन्होंने देश के विभिन्न पुरास्थलों के उत्खनन में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। करीब एक दशक से झारखंड के पुरातत्त्व सम्बन्धी शोध-अनुसन्धान और लेखन में सक्रिय हैं। इस क्रम में उन्होंने राज्य के विभिन्न इलाकों में अलग-अलग काल के कई पुरातात्त्विक स्थलों की खोज की, विशेष रूप से बौद्ध पुरास्थलों का विस्तृत संलेखन किया। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के साथ जुड़ाव के दौरान झारखंड के महापाषाणिक स्थल ओबरा (चतरा) के उत्खनन प्रमुख रहे। उनके शोधपत्र देश के कई प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित हो चुके हैं। फ़िलहाल वे झारखंड की महापाषाणिक संस्कृति पर शोध करने के अलावा दक्कन कॉलेज, पुणे से पुरातत्त्व में पी-एच.डी. कर रहे हैं और संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अन्तर्गत इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ हेरिटेज, नोएडा (पूर्व में नेशनल म्यूज़ियम इंस्टिट्यूट) में पुरातत्त्व के सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्यरत हैं।

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