Dalamber Ka Sapna

Author: Denis Diberot
Edition: 2007, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Dalamber Ka Sapna

दिदेरो की यह कृति दरअसल तीन संवादों—‘दलाम्बेर और दिदेरो का संवाद’, ‘दलाम्बेर का सपना’ और ‘संवाद का उत्तर भाग’—की शृंखला है। बेहद दिलचस्प और मौलिक ढंग से विज्ञान के सवालों पर चर्चा करते हुए भी इसका मूल उद्देश्य जीवविज्ञान की प्रस्थापनाएँ प्रस्तुत करना नहीं, बल्कि अधिभूतवाद, पारम्परिक नैतिकता, अलौकिक शक्तियों में विश्वास और दकियानूसी के विरुद्ध भौतिकवादी नियत्ववाद का बिगुल फूँकना था जिनका इस्तेमाल प्रभुत्वशाली वर्ग बाक़ी मनुष्यों के जीवन को नियंत्रित करने के लिए करता था। दिदेरो की ख़ास शैली में वैज्ञानिक चिन्तन और गीतात्मकता का मेल करनेवाली यह रचना इसीलिए क़रीब ढाई सौ वर्ष बाद भी दुनिया-भर के पाठकों को आकर्षित करती है।

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2007
Edition Year 2007, Ed. 1st
Pages 136p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Denis Diberot

Author: Denis Diberot

देनी दिदेरो

जन्म : 5 अक्टूबर, 1713; लांग्रेस (फ़्रांस)।

प्रबोधकालीन दार्शनिकों की शीर्ष-त्रिमूर्ति में वोल्तेयर और रूसो के साथ तीसरा नाम निर्विवाद रूप से दिदेरो का ही आता है। फ़्रांसीसी क्रान्ति के हरावलों को और समूचे फ़्रांसीसी समाज को वोल्तेयर के बाद दिदेरो ने ही सर्वाधिक प्रभावित किया था। वह अपने समय के ही नहीं, बल्कि पूरी अठारहवीं शताब्दी के एक धुरी व्यक्तित्व था।

अपने सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य ‘विश्वकोश’ (Encyclopédie) के पहले के वर्षों में दिदेरो ने ‘दार्शनिक चिन्तन’, ‘संशयात्म की मटरगश्तियाँ’ और ‘अन्धे के बारे में पत्र’ जैसी कृतियों से रूढ़ियों पर प्रहार शुरू कर दिया था और तीन महीने जेल में रहकर इसकी कीमत चुकाई बाहर आकर 1745 के आस-पास। दिदेरो ने विश्व के भौतिक-आत्मिक पक्ष की सभी तरह की जानकारियों को कोशबद्ध करने तथा उनके माध्यम से भौतिकवादी जीवन-दृष्टि और वैज्ञानिक तर्कणा को जन-जन तक पहुँचाने की महत्त्वाकांक्षी और अनूठी परियोजना की शुरुआत की। दालम्बेर, वोल्तेयर, स्यो, शेवालीए द ज़ाकूर, मार्मांतेल आदि उस काल के अधिकांश दार्शनिकों-विचारकों ने शुरू में विश्वकोश के लिए लिखा, पर दिदेरो ने अकेले ही इसका लगभग अस्सी प्रतिशत हिस्सा लिखा। इस मिशन के लिए उसने अपना स्वास्थ्य खपा-गला दिया और सामान्य जीवन की सभी सुख-सुविधाओं को होम कर दिया। 1751 से 1772 के बीच ‘विश्वकोश’ के कुल 28 बृहद् खंड प्रकाशित हुए। इसके प्रकाशन के दौरान प्रतिक्रियावादियों के लगातार हमलों के कारण दिदेरो को ज़बर्दस्त कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

‘विश्वकोश’ के सम्पादन के दौरान ही समय निकालकर दिदेरो ने ‘गूँगों-बहरों के बारे में पत्र’, ‘प्रकृति-विषयक प्रतिपादन’ (दार्शनिक कृतियाँ), ‘प्राकृतिक सन्तति’, ‘परिवार का पिता’ (नाटक), ‘दि नन’, ‘रामो का भतीजा’, ‘नियतिवादी जाक’ (उपन्यास), ‘रिचर्डसन की प्रशंसा में’ (साहित्यालोचना), ‘दालम्बेर और दिदेरो का संवाद’ और ‘दालम्बेर का सपना’ जैसी अपनी महत्त्वपूर्ण कृतियों की रचना की।

मृत्यु : 31 जुलाई, 1784; पेरिस (फ़्रांस)।

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