किसी भी समाज की कोई भी इकाई समाज के नैतिक मूल्यों, मान-मर्यादाओं और अनुशासन के मानदंडों का प्रतिबिम्ब होती है। फिर चाहे यह न्यायपीठों, न्यायाधीशों, या सत्य, न्याय और धर्म की रक्षा की प्रतिज्ञा लेनेवाले क़ानूनविद् ही क्यों न हों, जिन्हें समाज ने लोकतंत्र का प्रमुख आधार-स्तम्भ माना है। प्रस्तुत कहानियाँ हमें इसी क़ानूनी दाँव-पेच की जीती-जागती दुनिया में ले जाती हैं, जहाँ एक न्यायाधीश न्याय-परायणता निभाने के लिए अपने सर्वस्व की बलि दे देता है, तो दूसरा, सामाजिक बुराइयों के आगे घुटने टेक पूरे पेशे की पवित्रता भंग कर देता है। हिन्दी साहित्य की ये श्रेष्ठ कहानियाँ हमें उन पेचदार क़ानूनविदों से भी मिलवाती हैं, जिनके लम्बे होशियार हाथों में क़ानून की लगाम है। ‘दफ़ा 604’ उन्हीं की क़ानून-पटुता की सच्चाई उकेरती कहानियों का संग्रह है, जिसमें मानव-चरित्र के कई राग-रंग आलोकित होते हैं।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2015
Edition Year 2015, Ed. 1st
Pages 151p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Apoorv Agarwal

Author: Apoorv Agarwal

अपूर्व अग्रवाल

न्यायशास्त्र के अध्येता, लेखक एवं सम्पादक। नई दिल्ली में जन्म। श्रीराम स्कूल से आरम्भिक शिक्षा पाने के बाद विधि-शास्त्र की शिक्षा कोलकाता की सुविख्यात नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ जुरिडिकल साइंसेज से। हिस्ट्री ऑफ़ लीगल स्टडीज़ तथा लिटिगेशन प्रैक्टिस में विशेष अभिरुचि।

बचपन से ही न्यायशास्त्र की ओर आकर्षित।

लोकतांत्रिक समाज में न्यायशास्त्र सर्वशक्तिमान स्तम्भ है, जो प्रत्येक नागरिक को न्याय दिला सकता है, सत्यमेव जयते का पथ प्रशस्त कर सकता है, इसी मूल प्रेरणा से जीवन की इस शाखा में पदार्पण।

राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय युवा विचार मंचों पर वैश्विक समस्याओं पर मॉडल यूनाइटेड नेशंस के तत्त्वावधान में अनेक गोष्ठियों में प्रखर वक्ता तथा अध्यक्षता।

देश-विदेश में वाद-विवाद (मूट) कोर्ट में श्रेष्ठ प्रदर्शन। ‘तहलका’ पत्रिका में ‘डिफ़रेंटली एबल’ के सामाजिक अधिकारों तथा संघर्षों पर विशेष स्टोरी। ‘मनोरमा इयर बुक’ में सुखमृत्यु (युठेनेजिया) पर संक्षिप्तियाँ तथा सह-लेखन।

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