Chuppi Ki Guha Mein Shankh Ki Tarah

चन्द्रकान्त देवताले की सर्जनात्मकता बहुआयामी और विविधवर्णी है। उसे पढ़ते हुए, उस पर किसी एकरैखिक सार की तरह सोचना, सम्भव ही नहीं हो पाता। ख़ासकर तब, जब पाठक उसे अपने आस्वाद और अनुभव की उत्कट निजता में पढ़ रहा हो। वह सुझाने, रिझाने या समझाने-बुझाने वाली कविता से भिन्न, अन्तरात्मिक और ऐन्द्रिक अनुभूति की एक ऐसी कविता है, जो अपनी लयात्मक विविधता से, सामान्य शब्दों, रोज़मर्रा की घटनाओं, स्थिरबुद्धि, सीमित विचारों और आधुनिक तथा प्राचीन काव्य-संस्कारों का कायाकल्प करती सी लगती है। उसे पढ़ने के दौरान, मैं यह लगातार महसूस करता रहा हूँ, कि ठंडी वस्तुपरकता के साथ, उस पर विचार करना मेरे लिए कभी सम्भव नहीं हो पाता है। इस अर्थ में, इन निबन्धों को आत्मपरक निबन्ध ही कहा जा सकता है। ये निबन्ध, एक ऐसे कवि के रचना-संसार से जुड़े हैं, जो असम्भव आत्मविस्तार के निरन्तर प्रयत्नों का कवि है। इसलिए इन निबन्धों में भी, आस्वादक आत्म की दुनिया से कहीं, बहुत बड़ी और गतिमान दुनिया गतिशील है।
चन्द्रकान्त देवताले स्वभाव-कवि है। कविता उसके अस्तित्व का अविभाज्य हिस्सा है। उसकी कविता के संस्कार और उसके जीवन के संस्कार भी, हिन्दी की देशज कविता और लोकजीवन के संस्कार हैं। यही नहीं, उसकी कविता में प्राय: सर्वत्र सक्रिय प्रकृति भी, उसकी सर्जनात्मकता के देशज संस्कारों को ही जीवित करती है। उसकी कविता के रचाव में आदिमता और देशज आधुनिकता की अनुगूँजें ही नहीं, बल्कि मानवीय और पारिवारिक रिश्तों की एक गझिन दुनिया है।
चन्द्रकान्त देवताले पर लिखे गये इन निबन्धों में मैंने इस बात की कोशिश की है कि अपने आस्वाद के अनुभवों को इस तरह लिख सकूँ, कि उनकी रचना के मुक्त विन्यास को, पाठक अपनी तरह से पढ़ने का खुला अवकाश पा सकें।
—प्रस्तावना से
''आलोचना सच्चा-गहरा साहचर्य भी होती है। हिन्दी कवि चन्द्रकान्त देवताले और कवि-आलोचक प्रभात त्रिपाठी सिर्फ़ कविता में सहचर नहीं थे, मुक्तिबोध को लेकर सहचर-पाठक नहीं थे, वे कई बरस भौतिक रूप से साथ रहे थे। यह पुस्तक उस साहचर्य का किंचित् विलम्बित प्रतिफल है। हमें विश्वास है कि चन्द्रकान्त देवताले की कविता को समझने में इसकी निर्णायक भूमिका होने जा रही है। रज़ा पुस्तक माला में इसे प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है।’’
—अशोक वाजपेयी
Language | Hindi |
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Format | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2019 |
Edition Year | 2019, Ed. 1st |
Pages | 118p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14.5 X 1.5 |
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