Chaya Ke Pyale Mein Gend

Edition: 2021, Ed 2nd
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Chaya Ke Pyale Mein Gend

बकौल विजयमोहन सिंह: ‘‘कहानियाँ लिखना दिनोंदिन दुष्कर होता जा रहा है। इसका एक कारण तो शायद यह है कि मनुष्य की प्रकृति क्रमशः ऐन्द्रिकता तथा संवेदनात्मकता से बौद्धिकता की ओर जाने वाली है। इस परिवर्तन में अनुभव और उम्र की भी बड़ी भूमिका प्रमुख होती है। हमारी संवेदनाएँ उम्र के साथ उतनी सरस तथा ऐन्द्रिक नहीं रह पातीं। कथा-साहित्य कविता जितना भाव-केन्द्रित नहीं होता, लेकिन शुष्क विमर्श और बौद्धिक विश्लेषण पर भी आधारित नहीं होता। ऐसा होने पर उसका कथा-तत्त्व ही नहीं, पठनीयता भी क्षीण होती जाती है। कथा की पठनीयता विचार-साहित्य से पृथक् एक अलग धरातल पर निर्धारित होती है। यह अलग बात है कि अक्सर बड़ा कथा-साहित्य अनुभूति और विचार के एक विरल सन्तुलन पर आधारित होता है, किन्तु जिसे परिपक्वता कहते हैं, वह अनुभूति की तीव्रता की कीमत पर ही प्राप्त होती है।’’ यही कारण है कि इस संग्रह में वे ही कहानियाँ शामिल की गई हैं जिनमें अनुभूति की ताजगी बरकरार है, और जो पाठक की रुचि को बाँधे रख सकें। विजयमोहन सिंह कहानी के लिए सामाजिक- राजनीतिक रूप से प्रासंगिक होना अनिवार्य नहीं मानते, लेकिन वह केवल बुद्धि या कल्पना का विलास होकर रह जाए, इससे भी वे सहमत नहीं हैं। प्रस्तुत संग्रह की कहानियाँ अपने समय और समाज के धरातल पर खड़ी होकर कथा-रस का निर्वाह भी करती हैं, और इस तरह एक स्वस्थ और समग्र पठनीयता का आधार पाठक को देती हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2012
Edition Year 2021, Ed 2nd
Pages 120p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Vijay Mohan Singh

Author: Vijay Mohan Singh

विजयमोहन सिंह


जन्म : 1 जनवरी, 1936 को शाहाबाद (बिहार) में।

शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी.।

कार्यक्षेत्र की दृष्टि से 1960 से 1969 तक आरा (बिहार) के डिग्री कॉलेज में अध्यापन। अप्रैल, 1973 से 1975 तक  दिल्ली  विश्वविद्यालय  के  रामलाल  आनन्द महाविद्यालय में अध्यापन। अप्रैल, 1975 से 1982 तक हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में सहायक प्रोफ़ेसर। 1983 से 1990 तक भारत भवन, भोपाल में वागर्थ का संचालन। 1991 से 1994 तक हिन्दी अकादमी, दिल्ली के सचिव

1964 से 1968 तक पटना से प्रकाशित होनेवाली पत्रिका नई धारा का सम्पादन। नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशित यूनेस्को कूरियर के कुछ महत्त्वपूर्ण अंकों तथा एन.सी.ई.आर.टी. के लिए राजा राममोहन राय की जीवनी का हिन्दी अनुवाद।

प्रमुख कृतियाँ : आज की कहानी, कथा समय, बीसवीं शताब्दी का हिन्दी साहित्य, समय और साहित्य (आलोचना); टट्टू सवार, एक बंगला बने न्यारा, ग़मे हस्ती का हो किससे...!, शेरपुर 15 मील, चाय के प्याले में गेंद (कहानी-संग्रह); कोई वीरानी-सी वीरानी है... (उपन्यास); ’60 के बाद की कहानियाँ (चयन और सम्पादन)।
सम्मान : साहित्यकार सम्मान।

निधन : 25 मार्च, 2015

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