'गिरमिटियों' के 'गिरमिट' के अनुभवों के बारे में अधिकांशतः इतिहासकारों अथवा प्रवासियों के उत्तराधिकारियों द्वारा ही लिखा गया है। हम यहाँ एक ऐसे 'गिरमिटिया' के बारे में जानने जा रहे हैं जिसने अपने अनुभवों को एक लेखक के माध्यम से कलमबद्ध कराया है। वह असाधारण गिरमिटिया थे तोताराम सनाढ्य। गिरमिट प्रथा को बंद कराने में तोताराम के वृत्तांतों का ही राष्ट्रवादियों ने सहारा लिया।
सन् 1914 में फीजी से भारत लौटने के तत्काल बाद ही तोताराम सनाढ्य ने फीजी में बिताये अपने 21 वर्ष के जीवन और गिरमिट प्रथा के अनुभवों को प्रकाशित कराया।
तोताराम के सारे बयान बनारसीदास चतुर्वेदी ने फिजीद्वीप में मेरे 21 वर्ष में न लिखकर वे ही भाग प्रकाशित करवाए जो उस वक्त चल रहे कुलीप्रथा अभियान के लिए उचित थे। तोताराम के वे संस्मरण अप्रकाशित ही रहने दिये जो फीजी गये भारतीयों तथा फीजीवासियों की सामाजिक और धार्मिक-सांस्कृतिक स्थिति के बारे में थे। यह पांडुलिपि सुरक्षित रखी रही। प्रस्तुत पुस्तक में तोताराम अपनी स्मृति से बनारसीदास चतुर्वेदी को फीजी के अपने संस्मरण सुना रहे हैं और लिप्यंतर कराते जा रहे हैं। चतुर्वेदी जी ने लेखक के संस्मरण के मूल रूप की चीड़फाड़ न करके उन्हें ज्यों-का-त्यों लिखा है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Brij Vishal Lal |
Publication Year | 2012 |
Edition Year | 2022, Ed. 2nd |
Pages | 144p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14.5 X 1.5 |