Bhartiya Sahitya

तमाम भारतीय भाषाओं में रचित साहित्य ही सच्चा भारतीय साहित्य है। सभी समान अधिकार के पात्र हैं। यह बात अलग है कि हिन्दी का क्षेत्र और पहुँच अन्यों से अधिक है। साथ ही यह भी सच है कि प्रान्तीय भाषाओं का लेखन हिन्दी में अनूदित होकर व्यापक आधार प्राप्त करता है।
भारतीय भाषाओं और साहित्य का यह पारस्परिक आदान-प्रदान और योगदान संगठित, योजनाबद्ध तरीक़े से बढ़ाया जाना चाहिए। तभी हिन्दी के प्रति अन्य भाषा-भाषियों का भय और आशंकाएँ दूर होंगी। तभी बंकिम और रवीन्द्रनाथ की स्वदेश शक्ति को व्यावहारिक उदात्तता तक लाया जा सकता है। प्राचीन काल में तीर्थयात्राओं ने धर्म के माध्यम से देश को जिस तरह जोड़ा था, वैसा फिर होना चाहिए भाषा और साहित्यिक माध्यमों से, ताकि देशवासियों के बीच अपरिचय कम हो। अतः बिना किसी दुर्भाव के अब व्यापक दृष्टिकोण से सभी भारतीय भाषाओं, अंग्रेज़ी साहित्य में रचित साहित्य के अध्ययन को राष्ट्रीय एवं प्रान्तीय स्तरों पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
‘भारतीय साहित्य’ पुस्तक इसी दिशा की ओर बढ़ाए गए क़दमों की एक कड़ी है। इसमें जातीयता के निर्माण के कारकों, घटकों एवं उपकरणों एवं भारतीय साहित्य के इतिहास की समस्याओं के साथ उसकी तलाश में किए गए प्रयासों का संकेत है।
Language | Hindi |
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Format | Hard Back |
Publication Year | 2009 |
Edition Year | 2022, Ed. 3rd |
Pages | 247p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 15 X 2 |
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