तमाम भारतीय भाषाओं में रचित साहित्य ही सच्चा भारतीय साहित्य है। सभी समान अधिकार के पात्र हैं। यह बात अलग है कि हिन्दी का क्षेत्र और पहुँच अन्यों से अधिक है। साथ ही यह भी सच है कि प्रान्तीय भाषाओं का लेखन हिन्दी में अनूदित होकर व्यापक आधार प्राप्त करता है।

भारतीय भाषाओं और साहित्य का यह पारस्परिक आदान-प्रदान और योगदान संगठित, योजनाबद्ध तरीक़े से बढ़ाया जाना चाहिए। तभी हिन्दी के प्रति अन्य भाषा-भाषियों का भय और आशंकाएँ दूर होंगी। तभी बंकिम और रवीन्द्रनाथ की स्वदेश शक्ति को व्यावहारिक उदात्तता तक लाया जा सकता है। प्राचीन काल में तीर्थयात्राओं ने धर्म के माध्यम से देश को जिस तरह जोड़ा था, वैसा फिर होना चाहिए भाषा और साहित्यिक माध्यमों से, ताकि देशवासियों के बीच अपरिचय कम हो। अतः बिना किसी दुर्भाव के अब व्यापक दृष्टिकोण से सभी भारतीय भाषाओं, अंग्रेज़ी साहित्य में रचित साहित्य के अध्ययन को राष्ट्रीय एवं प्रान्तीय स्तरों पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

‘भारतीय साहित्य’ पुस्तक इसी दिशा की ओर बढ़ाए गए क़दमों की एक कड़ी है। इसमें जातीयता के निर्माण के कारकों, घटकों एवं उपकरणों एवं भारतीय साहित्य के इतिहास की समस्याओं के साथ उसकी तलाश में किए गए प्रयासों का संकेत है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2009
Edition Year 2022, Ed. 3rd
Pages 247p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 15 X 2
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Moolchand Gautam

Author: Moolchand Gautam

डॉ. मूलचन्द गौतम

जन्म : 13 अप्रैल, 1954; अलीगढ़ जनपद के गौंडा गाँव में।

शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी-संस्कृत) पी-एच.डी.।

इंटर तक गाँव के कॉलेज में, उच्च शिक्षा आगरा वि.वि. से सम्बद्ध श्री वार्ष्णेय महाविद्यालय अलीगढ़ से।

राष्ट्रीय छात्रवृत्ति प्राप्त प्रतिभाशाली छात्र, वि.वि. परीक्षाओं में उच्च स्थान प्राप्त।

1977 से एस.एम. कॉलेज चन्दौसी में स्नातक व स्नातकोत्तर कक्षाओं में हिन्दी साहित्य का अध्यापन, अनेक शोध छात्रों का सफल निर्देशन।

प्रमुख कृतियाँ : ‘हिन्दी नाटकों की भूमिका : मध्यवर्ग के सन्दर्भ में’ (शोध-प्रबन्ध)।

साहित्य अकादेमी से भारतभूषण अग्रवाल पर मोनोग्राफ़, ‘पुरोवाक्’ समीक्षात्मक निबन्धों का संकलन, ‘भारतीय साहित्य’ (सम्पादन) आदि।

आकाशवाणी व दूरदर्शन पर अनेक कार्यक्रमों का प्रसारण।

राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका ‘परिवेश’ का सम्पादन।

विचारों से वामपंथी-समाजवादी। उ.प्र. प्रगतिशील लेखक संघ के सचिव। मानव सेवा में गहरी आस्था। जाति, धर्म, लिंग, रंगभेद के विरोधी। अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक विषयों पर राष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठियों में विषय प्रवर्तन व विचार-विमर्श। हर प्रकार के शोषण के विरुद्ध निरन्तर संघर्षरत। अनेक वामपंथी, समाजवादी जनसंगठनों के जन-आन्दोलनों में भागीदारी व नेतृत्व। राष्ट्रीय लघु पत्रिका ‘समन्वय समिति’ की कार्यकारिणी के सक्रिय सदस्य। राष्ट्रीय स्तर के साहित्यिक-सांस्कृतिक आयोजनों का आयोजन व संचालन।

सम्मान : उ.प्र. हिन्दी संस्थान के 1992 के ‘सरस्वती पुरस्कार’ के लिए माननीय राज्यपाल द्वारा सम्मानित। ‘6 दिसम्बर, 1992’ व ‘सत्ता-संस्कृति और भूमंडलीकरण’ पर केन्द्रित परिवेश के विशेषांकों से राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित व प्रशंसित।

 

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