अशरफ़ शाद पेशे से पत्रकार हैं और दिल से शायर। इस उपन्यास में उन्होंने अपनी इन दोनों ख़ूबियों का भरपूर इस्तेमाल किया है। अपनी ज़मीनों से उखड़े, पराए मुल्कों में भटकते बेवतनों के आर्थिक-सामाजिक हालात का जायज़ा अगर उनका पत्रकार, बिलकुल एक शोधार्थी की तरह लेता है, तो उन लोगों के भीतर घुमड़ते दुःख को ज़बान उनका शायर देता है। तथ्यात्मक विवरणों की निर्वैयक्तिकता और इन विवरणों में गुँथे पात्रों के साथ लेखक की गहन संलग्नता के चलते ही वह तनाव जन्म लेता है जो दर्जनों कथाओं-उपकथाओं में फैली इस गाथा को अद्भुत ढंग से पठनीय बनाता है।

निस्सन्देह इसमें अशरफ़ शाद के ‘कहानीपन’ की भी भूमिका है जिसके लिए आधुनिक उर्दू कथा-साहित्य में उन्हें एक ख़ास जगह हासिल है। अपने तमाम सरोकारों, चिन्ताओं और विस्तृत कथा-फलक के बावजूद ‘बेवतन’ का कहानीपन कहीं किसी झोल का शिकार नहीं होता।

‘बेवतन’ की चिन्ता के दायरे में वे लोग हैं जो बेहतर ज़िन्दगी की तलाश में अपने घरों और मुल्कों को छोड़कर परदेसी हो जाते हैं और पूरी ज़िन्दगी अपनी ‘सम्पूर्ण’ पहचान के लिए अपने आपसे और हालात से जद्दोजहद करते रहते हैं।

 

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2000
Edition Year 2000, Ed. 1st
Pages 588p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 3
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Author: Asharf Shaad

अशरफ़ शाद

जन्म : 1946; मुरादाबाद, भारत।

शिक्षा : बी.ए. (उर्दू कॉलेज, कराची), एम.ए. ऑनर्स (न्यू साउथ वेल्ज़ विश्वविद्यालय, सिडनी, आस्ट्रेलिया), पत्रकारिता में डिप्लोमा (इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ जर्नलिज़्म, बुडापेस्ट, हंगरी)।

व्यावसायिक गतिविधियाँ : उप-सम्पादक, दैनिक ‘हुर्रियत’ (1966-67); उप-सम्पादक, दैनिक ‘मशरिक़’, कराची (1967-70); सहायक सम्पादक, साप्ताहिक ‘अलफ़तह’ (1970-71); समाचार सम्पादक, दैनिक ‘एलान’, कराची (1971-72 और 1979); वरिष्ठ संवाददाता, दैनिक ‘मशरिक़’, कराची (1972-75); प्रबन्ध सम्पादक, साप्ताहिक ‘मियार’, कराची (1976-1980); प्रबन्धक, ईस्टर्न न्यूज़ कॉरपोरेशन, न्यूयॉर्क (1980-82); प्रसार-प्रचार प्रबन्धक, ‘गल्फ़ मिरर’, बहरैन (1983-87); सम्पादक, उर्दू विभाग, दैनिक ‘अरब टाइम्ज़’, कुवैत (1987-89)।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मुहिम में सक्रिय भागीदारी निभाई तथा जेल भी गए। जनरल याह्या ख़ाँ के सैनिक शासन के समय अख़बारों की देशव्यापी हड़ताल में शामिल तथा नौकरी से बरखास्त। जुल्फ़िक़ार अली भुट्टो के शासन काल में ‘मुसावात’ के पत्रकारों को नौकरी से हटाए जाने का सशक्त विरोध किया तथा तीन सप्ताह (1973) जेल में रहे। जनरल ज़ियाउल हक़ के समय राष्ट्रद्रोह के जुर्म में आरोपी रहे। 1978 में तीन माह की क़ैद। ‘मियार’ के बाद लगातार चार पत्रिकाओं के बन्द होने और मुक़दमा क़ायम होने के बाद (1980 में) न्यूयॉर्क चले गए।

प्रमुख कृतियाँ : ‘निसाब’ (कविता-संग्रह) 1996; ‘बेवतन’ 1997; ‘वज़ीरेआज़म’ 1999; ‘सदरे मोहतरम’ (उपन्यास) आदि।

सम्मान : ‘बेवतन’ के लिए ‘वज़ीरेआज़म पुरस्कार’ आदि से सम्मानित।

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