मराठी कहानी का अपना संस्कार और वैशिष्ट्य है। दया पवार की मराठी से अनूदित इन कहानियों में समाज के दलित, पिछड़े और बुनियादी मानव-अधिकारों से वंचित तबके के लोगों के जिए और भोगे हुए यथार्थ का चित्रण है जो पाठक के मानस को उद्वेलित करने की क्षमता रखता है।

‘फिदेल’ जहाँ व्यवस्था के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानेवाले युवक के चारित्रिक पतन की कहानी कहता है, वहीं ‘अकालग्रस्त’ भूखे-नंगे और विवश लोगों के दयनीय और शोषित जीवन की मार्मिक कहानी है। ‘रजस्वला’, ‘विधायक साहब’, ‘कठफोड़वे’, शीर्षक कथा ‘बीस रुपए’ इस संग्रह की उल्लेखनीय एवं चर्चित कहानियाँ हैं। इन कहानियों में दलित जीवन की व्यथा, पीड़ा, घृणा, प्रेम, विद्रूपताओं एवं विडम्बनाओं की तीक्ष्ण और मार्मिक अभव्यक्ति हुई है।

निश्चय ही इस संग्रह का भाषायी प्रवाह और अन्तर्वस्तु की तीक्ष्णता पाठकों को सर्जनात्मक आनन्द की अनुभूति कराएगी और दलित जीवन की व्यथा-कथा एवं मराठी साहित्य के नए क्षितिज से परिचय भी।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2003
Edition Year 2003, Ed. 1st
Pages 99p
Translator Ratilal Shaheen
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Daya Pawar

Author: Daya Pawar

दया पवार

शीर्षस्थ दलित लेखक, कवि और समीक्षक।

1935 में जन्म।

पश्चिम रेलवे के लेखा विभाग से दीर्घ सेवा के बाद निवृत्ति।

1974 में प्रकाशित प्रथम कविता-संग्रह ‘कोंडवाड़ा’ (काँजी हाउस) को ‘महाराष्ट्र शासन पुरस्कार’। उसके बाद आत्मकथ्य ‘बलुतं’ (अछूत—1979) को कई राष्ट्रीय और अन्‍तरराष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुए और कई भाषाओं में उसके अनुवाद हुए।

1983 में प्रकाशित कहानी-संग्रह ‘विटाल’ (अपवित्र) और ‘चावड़ी’ (पंचायत) से दलित सृजनात्मक संवेदनशीलता के नए आयाम नज़र आए। उन्होंने भगवान बुद्ध के ‘धम्मपद’ से कुछ गाथाओं का सीधा पाली से मराठी में अनुवाद किया जो 1991 में प्रकाशित हुआ।

श्रीलंका, फ्रांस, जर्मनी तथा अन्य कई विदेश यात्राएँ।

1996 में दिल्ली में आकस्मिक देहान्त।

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