दुनिया की एक दर्जन से ज्यादा भाषाओं में पढ़ी जा चुकी यह पुस्तक नारीवादी आन्दोलन के इतिहास में मील का पत्थर मानी जाती है। इतिहास, साहित्य और लोक-धारणाओं से उदाहरण चुन-चुनकर जर्मेन ग्रीयर इस पुस्तक को स्त्री-विमर्श का एक अनूठा और समग्र दस्तावेज़ बना देती हैं।
अब तक की सर्वोत्कृष्ट नारीवादी पुस्तक...एक ऐसी पुस्तक जिसका अपना एक व्यक्तित्व है; जो ‘स्व’ और ‘अन्य’ के बीच भेद करना जानती है; और, जो पुरुष और स्त्री के श्रेष्ठ का संश्लेषण करती चलती है।
—न्यूयॉर्क टाइम्स
‘द फीमेल यूनॅक’ में जर्मेन ग्रीयर ने अपने विलक्षण हास्य-बोध और सूक्ष्म तार्किकता से मुझे स्त्री-स्वातंत्र्य का समर्थक बना दिया।
—कीनेथ टिनैन, आब्जर्वर
क्रुद्ध शक्ति की अद्भुत, सतत धारा...हिला देनेवाला तर्क-प्रवाह।
—लिसनर
तीक्ष्ण बुद्धिमत्ता के साथ रचित; कौतुक, संवेदनात्मक सघनता, अन्तर्दृष्टि तथा आवेश से भरपूर (पुस्तक)...
—न्यूयॉर्क टाइम्स बुक रिव्यू
गहन बौद्धिकता, कौतुक और ख़ूबसूरती के साथ लिखी गई (पुस्तक)...
—वोग
About the author : जर्मेन ग्रीयर
जन्म : मेलबोर्न, ऑस्ट्रेलिया में 1949 में।
शिक्षा : मेलबोर्न विश्वविद्यालय से बी.ए. ऑनर्स (1959), सिडनी से प्रथम श्रेणी में एम.ए. (1967) और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. (1968)।
प्रमुख कृतियाँ : ‘द ओब्सटेकल रेस’, ‘सेक्स एंड डेस्टिनी’, ‘द मैड वुमेन्स अंडरक्लॉथ्स’, ‘डैडी’, ‘आई हार्डली न्यू यू’, ‘द चेंज’, ‘स्लिपशॉड सिबिल्स’, ‘द होल वुमैन’।
Language | Hindi |
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Format | Hard Back, Paper Back |
Edition Year | 2005 |
Pages | 318p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 21 X 14 X 2 |