Awadh Ka Kisan Vidroh

Edition: 2018, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
As low as ₹521.25 Regular Price ₹695.00
25% Off
In stock
SKU
Awadh Ka Kisan Vidroh
- +
Share:

भारत को किसानों का देश कहा जाता है, बावजूद इसके न तो किसान कभी इस धारणा को अपने आत्मविश्वास में अनूदित कर सके, न देश के मध्यवर्ग और कर्णधारों ने उन्हें इसके लिए प्रोत्साहित किया। यह देश जो लगातार आगे बढ़ता रहा है, इसका किसान या तो ख़ुद पीछे छूटता चला गया या आगे बढ़ने के लिए उसने किसान की अपनी पहचान को पीछे छोड़ा है। यह हमारे राष्ट्रीय जीवन की सबसे बड़ी विडम्बनाओं में एक है।

यह पुस्तक भारतीय किसान-जीवन के एक महत्त्वपूर्ण अध्याय पर केन्द्रित है। 1920-22 के दौरान अवध के लगभग सभी ज़िलों में स्वत:स्फूर्त ढंग से फूट पड़ा किसान-विद्रोह उस आक्रोश की अभिव्यक्ति था जो किसानों के मन में अपनी लगातार उपेक्षा से पनप रहा था। इस घटना ने एक ओर तत्कालीन समय की सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक नीतियों की सीवन उधेड़कर उसकी वास्तविकता को उजागर किया तो दूसरी ओर राष्ट्रवादी सोच और उसके नेतृत्व के वर्ग-आधार को स्पष्ट करते हुए वर्ग और जाति की विकृतियों को भी उजागर किया। इस आन्दोलन ने शायद पहली बार राष्ट्रवाद की सुपुष्ट मिट्टी से गढ़े जानेवाले देश की वर्गीय प्राथमिकताओं को स्पष्ट किया। आश्चर्य नहीं कि राष्ट्र-निर्माण की आक्रामक पहलक़दमियों में आज भी न सिर्फ़ किसान बल्कि वे सब लोग बाहर रह जाते हैं जिनके पास अपनी बात कहने की भाषा और सामाजिक साहस नहीं है। किसान की अवस्थिति, क्योंकि शहर के हाशिये से भी काफ़ी दूर है, इसलिए वह केन्द्रीय सत्ताओं पर अपना दबाव और भी कम डाल पाता है। उनके किसी भी आन्दोलन के क्रान्तिकारी तेवर को दबाने और अभिजात तबकों को लाभ पहुँचाने की नीति तब भी आम थी, आज भी आम है।

अवध के किसान-विद्रोह का यह पुनर्मूल्यांकन देश के एक अमूर्त विराट के बहाने एक विशाल जनसमूह के मूर्त की इस सुनियोजित उपेक्षा की परम्परा के वर्तमान को समझने के लिए भी उपयोगी है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2018
Edition Year 2018, Ed. 1st
Pages 328p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 2.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Awadh Ka Kisan Vidroh
Your Rating
Subhash Chandra Kushwaha

Author: Subhash Chandra Kushwaha

सुभाष चन्द्र कुशवाहा

जन्म : 26 अप्रैल, 1961 को ग्राम जोगिया जनूबी पट्टी, फ़ाज़िलनगर, कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) में।

शिक्षा : स्नातकोत्तर (विज्ञान) सांख्यिकी।

प्रमुख कृतियाँ : ‘आशा’, ‘कैद में है ज़िन्दगी’, ‘गाँव हुए बेगाने अब’ (कविता-संग्रह); ‘हाकिम सराय का आख़िरी आदमी’, ‘बूचड़ख़ाना’, ‘होशियारी खटक रही है’, ‘लाला हरपाल के जूते और अन्य कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘चौरी चौरा : विद्रोह और स्वाधीनता आन्दोलन’ (इतिहास); ‘कथा में गाँव’, ‘जातिदंश की कहानियाँ’, ‘कथादेश’ साहित्यिक पत्रिका का किसान विशेषांक—‘किसान जीवन का यथार्थ : एक फ़ोकस’ तथा ‘लोकरंग वार्षिकी’ का 1998 से निरन्तर सम्पादन।

सम्मान : ‘सृजन सम्मान’, ‘प्रेमचन्द स्मृति कथा सम्मान’, ‘आचार्य निरंजननाथ सम्मान’ आदि।

ई-मेल : sckushwaha@gmail.com

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top