विलुप्ति के कगार पर खड़ी भारत की एक सबसे प्राचीन मानी जानेवाली असुर आदिवासी जनजाति पिछले दिनों काफ़ी चर्चा में रही है। अपनी कुछ ख़ास विशेषताओं, मान्यताओं और कुछ ख़ास माँगों के कारण इसने सभ्य समाज का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है।

दरअसल इस असुर जनजाति के लोग लौह अयस्क को खोजनेवाले तथा लौह धातु से हथियार आदि निर्माण करनेवाले विश्व की चुनिन्दा जनजातियों में से एक हैं। ये लोग अपने को पौराणिक असुरों का वंशज मानते हैं। पिछले दिनों ये चर्चा में तब आए जब इनके कुछ बुद्धिजीवी कार्यकत्ताओं ने यह माँग उठाई कि दशहरा में दुर्गा की महिषासुर मर्दिनी की जो प्रतिमा लगाई जाती है तथा उसमें उन्हें हिंसक रूप और महिषासुर का वीभत्स तरीक़े से वध करते हुए दिखाया जाता है, इससे उनकी भावना को ठेस पहुँचती है। यह उनके पूर्वजों का ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण असुर आदिवासी समुदाय का अपमान है। सभ्य समाज के लिए ऐसा वीभत्स और अभद्र अमानवीय प्रदर्शन सभ्यता के विरुद्ध है। इसलिए इस पर तत्काल रोक लगनी चाहिए।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2020
Edition Year 2020, 1st Ed.
Pages 224p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Shrirang

Author: Shrirang

श्रीरंग

'असुर आदिवासी' के लेखक श्रीरंग समकालीन समानान्तर हिन्दी कविता के प्रमुख कवि एवं आलोचक हैं। अब तक इनकी लगभग दर्जन-भर किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनके आलेख और रचनाएँ देश की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। देश के दलित समुदाय, जनजातीय समुदाय तथा विमुक्त एवं घुमन्‍तू तथा अर्धघुमन्‍तू समुदायों के प्रति अपनी विशिष्ट दृष्टि के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं।

सम्प्रति : इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता हैं।

 

 

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