Assi Ghat Ka Bansuri Wala

Poetry
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Assi Ghat Ka Bansuri Wala

चाहता हूँ/अकेला हो जाऊँ/कोई आसपास न रहे/ज़्यादा देर तक/आए और चला जाए/अपने आप।

तजेन्दर सिंह लूथरा की कविताओं में ‘अनायासता’ का यह स्वर कई स्तरों पर दिखाई पड़ता है। वे सायास कवि नहीं होना चाहते; न आई हुई कविता को अतिरिक्त प्रयास से गढ़ने-बनाने की कोशिश करते हैं; सामने से गुज़रते हुए जीवन व संसार की जिस-जिस छवि को पकड़ते हैं, उसे हू-ब-हू उसी रूप में पाठक के सामने रखने की उनकी इच्छा ही उनकी काव्य-कला है। इसके चलते कई बार अनुभूतियों के जो बिम्ब कुछ अनगढ़ रूप में दिखाई पड़ते हैं, वे दरअसल एक भीतरी तराश का ऊपरी आवरण हैं, जो पाठक को धीरे-धीरे अपने भीतर उतरने के लिए आमंत्रित करते हैं।

घर से लेकर महानगर तक के विस्तार में विचरण करती उनकी काव्य-संवेदना जीवन की हर उस विकलता का नोटिस लेती है, जिसका प्रभाव मनुष्य की नियति पर पड़ता है या पड़ सकता है। संग्रह में शामिल कविता ‘मुझे जीने दो’ की यह पंक्ति ‘मैं इतना सार्वजनिक हो गया/कि मुझे मेरे सिवा सब पहचानने लगे थे।’ सार्वजनिक स्पेस की आक्रामकता के बीच मौजूद व्यक्ति की पीड़ा का अचूक रेखांकन है।

यह कवि का पहला कविता-संग्रह है, लेकिन कविता-प्रेमियों के लिए उनका कवि-व्यक्तित्व और उनकी कविताएँ अपरिचित नहीं हैं। इस संग्रह में शामिल ‘अस्सी घाट का बाँसुरीवाला’, ‘जैसे माँ ठगी गई थी’ और ‘एक साधारण शवयात्रा’ जैसी कविताओं ने बराबर सुधी पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है; और अपनी नवीन दृष्टि और पर्यवेक्षण के चलते उनकी याददाश्त में स्थायी जगह बनाई है।

उम्मीद है, कविता का यह नया रंग पाठकों को ताज़गी प्रदान करेगा।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2012
Edition Year 2012, Ed. 1st
Pages 72p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Editorial Review

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Tajendra Singh Luthra

Author: Tajendra Singh Luthra

तेजेन्दर सिंह लूथरा

सहारनपुर तथा अमृतसर में रहकर पहले बी.कॉम. तथा फिर सी.ए. की शिक्षा पाई।

कविता-कर्म से विद्यार्थी जीवन से ही सम्बद्ध। कविताएँ विभिन्न पत्रिकाओं व समाचार-पत्रों, जैसे ‘नई दुनिया’, ‘शुक्रवार’, ‘अमर उजाला’, ‘दैनिक भास्कर’, ‘लौ’ तथा ‘आलोचना’ में छपती रहीं।

पेशे से आई.पी.एस. (IPS) सेवा में नियुक्ति; फ़िलहाल दिल्ली में कार्यरत।

 

 

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