Apradh Aur Dand

Edition: 2012
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Apradh Aur Dand

दोस्तोयेव्‍स्‍की ने अपने समय के निरंकुश शासन और सामाजिक संरचना में जी रहे आम रूसी लोगों के दारुण यंत्रणा-भरे जीवन और निरन्तर आत्मा पर बोझ डालने वाले अमानवीय परिवेश को, उनके अवसादों, घुटन और खंडित स्वप्नों को, पुरातन मन्थरता की पीड़ा को और साथ ही पूँजीवादी संक्रमण के साथ-साथ जारी सामाजिकता के व्यक्तित्व के विघटन को अपनी रचनाओं का विषय बनाया। अपने दिक्काल के यथार्थ के कलात्मक पुनर्सृजन के लिए उन्होंने जो प्रविधि अपनाई, वह पात्रों के मनोजगत के संश्लिष्ट बहुपरती द्वन्द्वों में गहरे, और गहरे उतरते जाने की प्रविधि थी।

'अपराध और दंड' लेखक के सभी उपन्यासों में सबसे आसानी से पढ़ा जा सकनेवाला उपन्यास है। यद्यपि समझने की दृष्टि से यह एक कठिन और गूढ़ रचना है। इस उपन्यास को लेकर प्रचलित धारणाएँ अपेक्षाकृत सरलीकृत हैं, जिनमें सारा ध्यान उसकी अन्तर्वस्तु के किसी एक पहलू पर केन्द्रित किया जाता है। मसलन, 'अपराध और दंड' को प्राय: एक क़ि‍स्म का 'फ़ौजदारी' उपन्यास माना जाता है अथवा उसे कोरी राजनीतिक कृति समझा जाता है, जो तथाकथित निषेधवादियों अर्थात गत शती के सातवें दशक के विप्लवी और क्रान्तिकारी विचारमना रूसी युवाजन के विरुद्ध लक्षित है।

निस्सन्देह, उपन्यास में ये सभी बातें किसी-न-किसी हद तक मौजूद हैं। दोस्तोयेव्स्‍की ने हत्यारे की मनोदशा का सूक्ष्मतम, बेजोड़ कलात्मक 'विश्लेषण' किया था। इस बात में भी कोई सन्देह नहीं कि उपन्यास रूसी निषेधवाद से गहरे रूप से सम्बन्धित है। इसी तरह इसमें तनावपूर्ण नैतिक-दार्शनिक मर्म भी भरपूर है। लेकिन मूल बात कुछ और ही है। दोस्तोयेव्‍स्‍की के उपन्यासों के मूलाधार में विचार-मानव यानी ऐसे चरित्र हैं जो इस या उस विचार के अन्धाधुन्ध समर्थक हैं। 'अपराध और दंड' इसका साकार रूप है; इसमें नायक ने अपने सर्वस्व को एक भ्रामक ही नहीं, वरन् भयावह विचार के लिए अर्पित कर दिया है...।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2012
Edition Year 2012
Pages 508p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1.5
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Fyodor Dostoyevsky

Author: Fyodor Dostoyevsky

फ़्योदोर दोस्तोयेव्‍स्‍की

 

जन्‍म : 11 नवम्बर, 1821 को मास्‍को में। उनके पिता मिखाईल अन्‍द्रेयेविच रूसी समाज की धार्मिक श्रेणी से सम्‍बन्‍ध रखते थे और मारीइन्‍स्‍काया के खैराती अस्‍पताल में डाक्‍टर थे।

दोस्‍तोयेव्‍स्‍की ने 1838 में भाई मिखाईल के साथ पीटर्सबर्ग के सैन्‍य इंजीनियरिंग स्‍कूल में दाख़ि‍ला लिया। मिखाईल के साथ उनकी गहरी भावनात्मक घनिष्‍ठता थी जो बाद में पत्रकारिता के दौरान भी बनी रही। 1843 में पढ़ाई समाप्‍त करके वह सेना में नौकरी करने लगे, लेकिन धीरे-धीरे उन्‍हें दृढ़ विश्वास हो गया कि साहित्य-सृजन ही उनके जीवन का कार्यक्षेत्र है और फिर एक साल बाद ही उन्‍होंने नौकरी छोड़ दी।

दोस्‍तोयेव्‍स्‍की की रचनाएँ दरअसल उस ऐतिहासिक युग के यथार्थ और सामाजिक चिन्‍तन के अन्‍तर्विरोधों को प्रतिबिम्‍बि‍त करती हैं जब रूस और पश्चिमी यूरोप में सामाजिक सम्‍बन्‍ध विकट विशृंखलता और विघटन से गुज़र रहे थे।

उन्‍नीसवीं शताब्‍दी के सातवें-आठवें दशकों के दौरान दोस्‍तोयेव्‍स्की ने अपने सर्वाधिक प्रतिभापूर्ण और महान उपन्‍यास लिखे, जिनकी मान्‍यता आज भी न केवल रूसी साहित्‍य,  बल्कि समूचे विश्‍व-साहित्य के इतिहास में मील के पत्‍थरों के रूप में है। ये उपन्‍यास थे—‘अपराध और दण्‍ड’, ‘बौड़म’, ‘भूत-प्रेत’, ‘किशोर’ और ‘करामाज़ोव बन्‍धु’।

निधन : सन् 1881       

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