एलिस एक्का की कहानियों का ऐतिहासिक महत्त्व हैं—न केवल हिन्दी साहित्य के इतिहास की दृष्टि से बल्कि समसामयिक अस्मितामूलक विमर्शों की दृष्टि से भी। वे देश की और हिन्दी भाषा की पहली आदिवासी कहानीकार हैं।
हिन्दी साहित्य के इतिहास में किसी आदिवासी स्त्री रचनाकार का उल्लेख अनुपस्थित है। निश्चय ही इसकी वजह साहित्येतिहासकारों और अध्येताओं की अपनी सीमा रही है। लेकिन एलिस एक्का की कहानियों के रूप में हिन्दी साहित्य के इतिहास का एक ओझल पृष्ठ अब हमें सुलभ हो गया है। जो विचार-विमर्श की नई जमीन मुहैया कराता है।
एलिस की कहानियों में आदिवासी जीवनदर्शन सुस्पष्ट तरीके से अभिव्यक्त हुआ है। साहित्य-जगत में प्रचलित शिल्प-सौष्ठव के बजाय इन कहानियों में आदिवासी जन जीवन को उसकी सामान्य नैसर्गिकता में प्रस्तुत करने को ही प्रमुखता दी गई है।
यह स्वाभाविकता ही इनकी जान है जिसमें आदिवासी परम्परा, संस्कृति, इतिहास ही नहीं समूची समष्टि समाहित है। इन कहानियों के केन्द्र में प्रकृति और स्त्रियाँ हैं। अपने नैसर्गिक परिवेश और पुरखों द्वारा अर्जित संस्कृति में रची-बसी, श्रमशील, संघर्षशील और ‘देश निर्माण’ में अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार। निश्चय ही यह कहानियाँ पाठक को एक नए अनुभव-संसार तक ले जाएँगी।
Language | Hindi |
---|---|
Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2015 |
Edition Year | 2023, Ed. 2nd |
Pages | 104p |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 20 X 14 X 2 |