Agniparva : Shantiniketan

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Agniparva : Shantiniketan
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यह कृति हंगेरियन गृहवधू रोज़ा हजनोशी गेरमानूस की उनके शान्तिनिकेतन प्रवास-काल अप्रैल 1929 से जनवरी 1932 की एक अनोखी डायरी है। इसमें शान्तिनिकेतन जीवन-काल की सूक्ष्म दैनंदिनी, वहाँ के भवन, छात्रावास, बाग़-बगीचे, पेड़-पौधे, चारों ओर फैले मैदान, संताल गाँवों का परिवेश, छात्रों और अध्यापकों के साथ बस्ती के जीवित चित्र और चरित्र लेखिका की क़लम के जादू से आँखों के सामने जीते-जागते, चलते-फिरते नज़र आते हैं। पाठक एक बार फिर विश्वभारती शान्तिनिकेतन के गौरवपूर्ण दिनों में लौट जाएँगे, जब रवीन्द्रनाथ ठाकुर के महान व्यक्तित्व से प्रभावित कितने ही देशी और विदेशी विद्वान और प्रतिभासम्पन्न लोग वहाँ आते-जाते रहे।

रोज़ा के पति ज्यूला गेरमानूस इस्लामी धर्म और इतिहास के प्रोफ़ेसर के पद पर शान्तिनिकेतन में तीन वर्ष (1929-1931) के अनुबन्ध पर आए थे। तब हिन्दुस्तान में स्वतंत्रता आन्दोलन अपने चरम शिखर पर था। गांधी जी का ‘नमक सत्याग्रह’ उस समय की प्रमुख घटना थी। पुस्तक की विषय-वस्तु प्रथम पृष्ठ से अन्तिम पृष्ठ तक शान्तिनिकेतन की पृष्ठभूमि में स्वतंत्रता-संग्राम के अग्निपर्व का भारत की उपस्थिति है। इस पुस्तक की बदौलत रवीन्द्रनाथ ठाकुर, महात्मा गांधी और शान्तिनिकेतन हंगरी में सर्वमान्य परिचित नाम हैं।

एक वस्तुनिष्ठ रोज़नामचा के अलावा, पुस्तक रोचक यात्रा-विवरण, समकालीन राजनीतिक उथल-पुथल, इतिहास, धर्म-दर्शन, समाज और रूमानी कथाओं का बेजोड़ समन्वय है।

हमारे रीति-रिवाज़ों, अन्धविश्वासों और धार्मिक अनुष्ठानों को इस विदेशी महिला ने इतनी बारीकी से देखा कि हैरानी होती है उनकी समझ-बूझ और पैठ पर। प्रणय-गाथाओं के चलते भी यह डायरी एक धारावाहिक रूमानी उपन्यास-सा लगे तो आश्चर्य नहीं।

इस देश से विदा होने के समय वह इसी अलौकिक हिन्दुस्तान के लिए जहाज़ की रेलिंग पकड़कर फूट-फूटकर रो रही थी—‘‘मेरा मन मेरे हिन्दुस्तान के लिए तरसने लगा, हिन्दुस्तान जो चमत्कारों का देश है।’’

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Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2011
Pages 620p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Editorial Review

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Roza Hajnoczy Germanus

Author: Roza Hajnoczy Germanus

रोज़ा हजनोशी गेरमानूस

रोज़ा हजनोशी गेरमानूस (मृत्यु 1942) के शान्तिनिकेतन प्रवास-काल अप्रैल 1929 से जनवरी 1932 की डायरी पर आधारित पुस्तक Bengali Tüz (अंग्रेज़ी अनुवाद Fire of Bengal) को हंगेरियन साहित्य में क्लासिकी दर्जा प्राप्त है। रोज़ा अपने विद्वान पति प्रो. ज़्यूला गेरमानूस के साथ शान्तिनिकेतन में रहीं। इनके पति प्रो. गेरमानूस ने भी पुस्तक के 1972 के संस्करण की लम्बी भूमिका में रोज़ा के बारे में कोई ख़ास ब्यौरा नहीं दिया। दुर्भाग्य से पुस्तक के प्रकाशन से पहले ही 1942 में रोज़ा का देहान्त हो चुका था। हंगेरियन भाषा में इस पुस्तक का प्रकाशन 1944 में बुडापेस्ट से हुआ। 1972 तक इसके कई संस्करण प्रकाशित हुए। इस समय 2002 का सचित्र संस्करण उपलब्ध है। इसका अंग्रेज़ी अनुवाद एक दूसरी हंगेरियन महिला ईवा विमर ने अपने अंग्रेज़ पति डेविड ग्रांट के सहयोग से किया, जिसका प्रकाशन 1993 में ढाका (बांग्लादेश) से हुआ।

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