Acharya Mahaveerprasad Dwivedi Ke Shreshth Nibandh

आज हम जो कुछ भी हैं, उन्हीं के बनाए हुए है। यदि पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी न होते तो बेचारी हिन्दी कोसों पीछे होती, समुन्नति की इस सीमा तक आने का अवसर ही नहीं मिलता। उन्होंने हमारे लिए पथ भी बनाया और पथ-प्रदर्शक का भी काम किया। हमारे लिए उन्होंने वह तपस्या की है जो हिन्दी-साहित्य की दुनिया में बेजोड़ ही कही जाएगी। किसी ने हमारे लिए इतना नहीं किया, जितना उन्होंने। वे हिन्दी के सरल सुन्दर रूप के उन्नायक बने, हिन्दी-साहित्य में विश्व-साहित्य के उत्तमोत्तम उपकरणों का उन्होंने समावेश किया; दर्जनों कवि, लेखक और सम्पादक बनाए। जिसमें कुछ प्रतिभा देखी उसी को अपना लिया और उसके द्वारा मातृभाषा की सेवा कराई। हिन्दी के लिए उन्होंने अपना तन, मन, धन सब कुछ अर्पित कर दिया। हमारी उपस्थित उपलब्धि उन्हीं के त्याग का परिणाम है।
—प्रेमचन्द
अंग्रेज़ी भाषा में जो स्थान डॉ. जॉनसन का है वर्तमान में वही स्थान द्विवेदी जी का है। जिस प्रकार अंग्रेज़ी भाषा का वर्तमान स्वरूप बहुत दूर तक डॉ. जॉनसन का दिया हुआ है, उसी प्रकार हिन्दी का वर्तमान स्वरूप द्विवेदी जी का।
—सेठ गोविन्द दास
द्विवेदी जी ने समाजशास्त्र और इतिहास के बारे में जो कुछ लिखा है, उससे समाज-विज्ञान और इतिहास लेखन के विज्ञान की नवीन रूप-रेखाएँ निश्चित होती हैं। इसी दृष्टिकोण से उन्होंने भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक विकास का नवीन मूल्यांकन किया। एक ओर उन्होंने इस देश के प्राचीन दर्शन, विज्ञान, साहित्य तथा संस्कृति के अन्य अंगों पर हमें गर्व करना सिखाया, एशिया के सांस्कृतिक मानचित्र में भारत के गौरवपूर्ण स्थान पर ध्यान केन्द्रित किया, दूसरी ओर उन्होंने सामाजिक कुरीतियों, धार्मिक रूढ़ियों का तीव्र खंडन किया और उस विवेक परम्परा का उल्लेख सहानुभूतिपूर्वक किया जिसका सम्बन्ध चार्वाक और बृहस्पति से जोड़ा जाता है। अध्यात्मवादी मान्यताओं, धर्मशास्त्र की स्थापनाओं को उन्होंने नई विवेक दृष्टि से परखना सिखाया।
—रामविलास शर्मा
उल्लेखनीय है कि महावीरप्रसाद द्विवेदी की 'सरस्वती' ज्ञान की पत्रिका कही गई है और उनका गद्य हिन्दी साहित्य का ज्ञानकांड। इस प्रकार, भारत का उन्नीसवीं शताब्दी का नवजागरण यूरोप के 'एनलाइटेनमेंट' अथवा 'ज्ञानोदय' की चेतना के अधिक निटक प्रतीत होता है और पन्द्रहवीं शताब्दी का नवजागरण 'रेनेसां' के तुल्य।
—नामवर सिंह
Language | Hindi |
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Format | Hard Back |
Publication Year | 2016 |
Edition Year | 2016, Ed. 1st |
Pages | 319p |
Translator | Not Selected |
Editor | Vinod Tiwari |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
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