''क्या तुमने अपने आप कोई काम करके उसके सुख का अनुभव नहीं किया है? खेती करना...कम-से-कम एक पौधा रोपकर उसका फूल और फल देखना, कोई नई चीज़ तैयार करना, प्यासे भटकते कुत्ते को पानी पिलाना, भूखे आदमी को खाना खिलाना, ऐसा कोई काम...।'' ''आप तो जानते हैं, मैंने सिर्फ़ आदमियों को गोली मारी है। आदमियों का ख़ून पिया है और एक बार आत्महत्या करने की कोशिश भी की थी।'' ''फिर?'' ''अच्छा, अब वह भी बता दूँ! मैं इसी रात यहीं से चला जाऊँगा।'' ''कहाँ?'' ''यह मेरा जन्म-स्थान है न! मैं माँ-बाप को ढूँढने की कोशिश करूँगा। हर घर में जाकर, हर औरत से पूछूँगा—'क्या तुम मेरी माँ हो? क्या तुम्हीं ने मुझे मेरे पैदा होते ही चिथड़ों में लपेटकर चौराहे के अँधेरे में डाल दिया था?' मरने के बाद भी मैं भयंकर प्रेत बनकर रात में हर घर में जाकर, आँखें फाड़कर दरवाजा खटखटाऊँगा।'' —इसी पुस्तक से

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Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2007
Pages 102p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
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Vaikukam Mohammad Bashir

Author: Vaikukam Mohammad Bashir

वैक्‍कम मुहम्‍मद बशीर

मलयालम साहित्य के प्रसिद्ध लेखक, मानवतावादी और स्वतंत्रता सेनानी वैक्‍कम मुहम्मद बशीर का जन्‍म 21 जनवरी, 1908 को थलायोलपरम्बु, वैक्‍कम, ज़िला—कोट्टायम, त्रावणकोर में हुआ। उनकी उल्लेखनीय कृतियों में ‘प्रेमलेखनम’, ‘बाल्यकालसखी’, ‘शबदंगल’, ‘पथुमायुदे आडू’, ‘मैथिलुकल’, ‘जनमदिनम’, ‘अनरघा निमिषम’ आदि शामिल हैं। देश-दुनिया की विभिन्‍न भाषाओं में उनकी रचनाओं का अनुवाद हो चुका है। भारत सरकार ने उन्हें 1982 में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया था। वे ‘साहित्य अकादेमी फ़ैलोशिप’, ‘केरल साहित्य अकादेमी फ़ैलोशिप’ और सर्वश्रेष्ठ कहानी के लिए केरल राज्य द्वारा ‘फ़ि‍ल्म पुरस्कार’ से सम्‍मानित किए जा चुके थे।

उनका निधन 5 जुलाई, 1994 को कोज़ीकोड, केरल में हुआ।

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