उपन्यास ‘वो आदमी’ एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक कालखंड का प्रामाणिक दस्तावेज़ है जिसमें भोपाल से सम्बन्धित कथाएँ और किंवदन्तियाँ बहुत ख़ूबी और बिना किसी दिखावे के, बचपन की यादों के साथ, ख़ासतौर पर पिता और परिवार के अन्य सदस्यों की यादें, जो समय के साथ ख़ामोश बदलाव के पात्र भी हैं और साक्षी भी, बुनी गई हैं। सॉमरसेट मॉम का भावार्थ उधार लेकर कहें तो किसी क़ीमती ग़लीचे के रहस्यमय पैटर्न में बुनी गई हैं।

यह उपन्यास दरअसल एक प्लॉट-रहित गाथा है, जो कि शायद ज़िन्दगी की असलियत भी है। इसे पढ़ते एहसास होता है कि बढ़ना और बदलना एक-दूसरे के बिना सम्भव नहीं, और कुछ होने के लिए बहुत सारी कभी रह चुकी चीज़ों का खो जाना ज़रूरी है।

‘वो आदमी’ पाठक को एक ओर जहाँ नॉस्टेल्जिया से भरता है, वहीं दूसरी सतह पर उससे मुक्त होने को सचेत भी करता है। सबसे महत्त्वपूर्ण, यह बताता है कि दुनिया किधर से आ रही है और किस दिशा में बढ़ रही है, और पाठक को अपने भीतर झाँक सकने के साहस के साथ ज़िन्दगी में भागीदारी का न्योता देता है।

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Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2006
Edition Year 2006, Ed. 1st
Pages 136p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Fazal Tabish

Author: Fazal Tabish

फ़ज़ल ताबिश

जन्म : 5 अगस्त, 1933; भोपाल (म.प्र.)।

शिक्षा : एम.ए. (उर्दू)।

उर्दू के महत्त्वपूर्ण, प्रगतिशील विचारधारा के कवि, नाटककार, कहानीकार।

प्रकाशन : दो नाटक—‘डरा हुआ आदमी’ और ‘अखाड़े के बाहर से’ देवनागरी लिपि में प्रकाशित। पहला कविता-संग्रह—‘रोशनी किस जगह से काली है’ उर्दू में निधन के आठ माह पूर्व, मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा प्रकाशित। ‘वो आदमी’ बहुचर्चित उपन्यास है।

भोपाल के कला-जगत् में विभिन्न खेमों और विचारधाराओं के बीच उन्होंने महत्त्वपूर्ण सेतु का काम किया।

निधन : 10 नवम्बर, 1955

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