Vansha : Mahabharat Kavita

Author: Harprasad Das
Translator: Prabhat Tripathi
Edition: 2014, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Vansha : Mahabharat Kavita

हरप्रसाद दास अपनी आधुनिक दृष्टि, गहन परम्परा-बोध और अपने विशिष्ट ओड़ि‍या स्वर के लिए पहचाने जाते हैं। ‘वंश’ में संकलित कविताएँ उनकी सुदीर्घ काव्य-साधना का एक अद्वितीय उदाहरण हैं।

वास्तव में यह ‘महाभारत’ के प्राय: सभी चरित्रों के गम्भीर अन्तर्मन्थन की एक सुघड़ काव्य-शृंखला है। सत्तर कविताओं के माध्यम से कवि ने ‘महाभारत’ की जो पुनर्रचना की है, उसका प्रयोजन कथा का तकनीकी आधुनिकीकरण भर नहीं है। ‘महाभारत’ की कथा-वस्तु या उसके चरित्रों की अन्त:प्रकृति में सतही बदलाव लाने की कोई चेष्टा यहाँ नहीं है। यह पुनर्पाठ आधुनिक और आत्मसजग कवि के द्वारा, ‘महाभारत’ के साथ सृजनात्मक अन्तर्पाठीयता का एक रिश्ता बनाने की कोशिश है। उस समय में इस समय को जोड़ देने के जोड़-तोड़ से क़तई अलग, यह साभ्यतिक संकट की त्रासदी के अनुभव और अवबोध की कविता है, जिसे वे कथा के प्राचीन रूपाकार में कुछ इस तरह रचते हैं कि हम पूरे ‘महाभारत’ को अपने सामयिक अनुभव की विडम्बनाओं और व्यर्थ हताशाओं की तरह घटता देखते हैं।

अपने लोक-जीवन के दैनिक समय में जीते-मरते लोगों के बीच, परिवेश की पास-पड़ोस की छवियों के रूबरू होते हुए, हम पाते हैं कि ‘महाभारत’ हमारे लिए महज़ किसी दूरस्थ क्लासिकी ऊँचाई या गहराई का प्रतीक या रूपक-भर नहीं है। लोक-जीवन की साधारण साम्प्रतिकता में, परिवार के संस्कारों में, क़ि‍स्सों की तरह रचा-बसा ‘महाभारत’, हरप्रसाद की सर्जना के माध्यम से, हमारी आन्तरिकता का एक मार्मिक दस्तावेज़ बन जाता है। साथ ही यह भी महत्त्वपूर्ण है कि ‘वंश’ की रचना में क्लासिकी और लोक का ऐसा अनूठा समन्वय है जो मनुष्य के आस्तित्विक संकट को सहज लोक-वाणी में सम्प्रेषित करता है।

 

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2014
Edition Year 2014, Ed. 1st
Pages 260p
Translator Prabhat Tripathi
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Author: Harprasad Das

हरप्रसाद दास

जन्‍म : 15 जनवरी, 1946

हरप्रसाद दास निर्विवाद रूप से ओड़िया की समकालीन कविता के अप्रतिम और अद्वितीय रचनाकार हैं।

सन् 1946 में जन्मे हरप्रसाद दास ने बाईस वर्ष की उम्र में भारतीय प्रशासन सेवा में प्रवेश किया था। वे संयुक्त राष्ट्र संघ से सम्बद्ध रहे तथा उसके अन्तर्गत यूरोप, अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, अरब देश तथा पूर्वी देशों के विभिन्न सार्वजनिक महत्त्व के कार्यों में योगदान दिया। वे केन्द्र के सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के मेम्बर रहे तथा वहाँ से ओडि‍शा स्टेट ट्रिब्यूनल के उप-सभापति होकर गए। वे इनफ़ि‍निटी एजूकेशन फ़ाउंडेशन के प्रेसिडेंट हैं।

साठ के दशक में लिखना शुरू किया। कविता, कहानी और आलोचनात्मक चिन्तन की कई पुस्तकें प्रकाशित, जि‍नमें से ‘वंश’, ‘देश’, ‘अपार्थिव’, ‘प्रेम कविता’, ‘प्रार्थना के लिए ज़रूरी शब्द’ और ‘गर्भ-गृह’ हिन्दी में भी प्रकाशित हैं। ‘गर्भ-गृह’ पर ‘साहित्य अकादेमी का पुरस्कार’ प्राप्त हुआ। ‘गंगाधर मेहेर राष्ट्रीय कविता पुरस्कार’ के अतिरिक्त ‘वंश’ कविता-संग्रह पर भारतीय ज्ञानपीठ का ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’ प्राप्त हुआ।

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