Desh

Author: Harprasad Das
Translator: Shankar Lal Purohit
Edition: 2013
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Desh

‘देश’ को उत्तर–आधुनिक महाकाव्य माना गया है। बल्कि इसे सिर्फ़ एक संरचना ही कहा जाए तो कवि को कोई आपत्ति नहीं होगी, यदि इसकी वास्तुकला में पाठक मेद, खनिज और काष्ठ के प्रयोग को पहचान ले। इस विलक्षण संरचना में बहुमुखी कल्पना का प्रयोग है, यथार्थ की एक मुख्य धारा इसमें कल्पना का स्रोत बनकर प्रवाहित होती है। किसी स्थिर बिन्दु से देश को देखने का तरीक़ा इसमें अद्भुत रूप से बदलता है। इस बदलाव में एक तीव्र और जादुई शक्ति है जो कविताओं को एकात्मकता प्रदान करती है, हालाँकि यह संरचना किसी पूर्व–निर्धारित काव्यवस्तु को प्रतिष्ठित नहीं करना चाहती।

देश की कविताओं में अनेक आरम्भ हैं और अनेक अन्त, परन्तु यह सब किसी एक निर्दिष्ट समाप्ति की ओर अग्रसर नहीं होता, बल्कि एक व्यापक असमाप्ति का निर्माण करता है। इसका उत्तर–आधुनिक रूप इसी असमाप्त निर्मिति से बनता है। ‘देश’ भूखंड है, भाग्य है, निवास है, निर्वासन है, यहाँ तक कि ‘देश’ देशान्तर है और देशोत्तर भी। विविधता के बीच अस्तित्व की यह खोज वस्तुपरकता के परे शुद्ध कविता के अन्त:करण को प्रस्तुत करती है। समकालीन भारतीय साहित्य में इस कृति को अपनी कलात्मकता की लय, लोक–चेतना की मिथकीय पुन:प्रतिष्ठा और मार्मिक अस्तित्वबोध के लिए पहचाना जाएगा।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2001
Edition Year 2013
Pages 256p
Translator Shankar Lal Purohit
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Author: Harprasad Das

हरप्रसाद दास

जन्‍म : 15 जनवरी, 1946

हरप्रसाद दास निर्विवाद रूप से ओड़िया की समकालीन कविता के अप्रतिम और अद्वितीय रचनाकार हैं।

सन् 1946 में जन्मे हरप्रसाद दास ने बाईस वर्ष की उम्र में भारतीय प्रशासन सेवा में प्रवेश किया था। वे संयुक्त राष्ट्र संघ से सम्बद्ध रहे तथा उसके अन्तर्गत यूरोप, अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, अरब देश तथा पूर्वी देशों के विभिन्न सार्वजनिक महत्त्व के कार्यों में योगदान दिया। वे केन्द्र के सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के मेम्बर रहे तथा वहाँ से ओडि‍शा स्टेट ट्रिब्यूनल के उप-सभापति होकर गए। वे इनफ़ि‍निटी एजूकेशन फ़ाउंडेशन के प्रेसिडेंट हैं।

साठ के दशक में लिखना शुरू किया। कविता, कहानी और आलोचनात्मक चिन्तन की कई पुस्तकें प्रकाशित, जि‍नमें से ‘वंश’, ‘देश’, ‘अपार्थिव’, ‘प्रेम कविता’, ‘प्रार्थना के लिए ज़रूरी शब्द’ और ‘गर्भ-गृह’ हिन्दी में भी प्रकाशित हैं। ‘गर्भ-गृह’ पर ‘साहित्य अकादेमी का पुरस्कार’ प्राप्त हुआ। ‘गंगाधर मेहेर राष्ट्रीय कविता पुरस्कार’ के अतिरिक्त ‘वंश’ कविता-संग्रह पर भारतीय ज्ञानपीठ का ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’ प्राप्त हुआ।

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