Uttar Bayan Hai

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Uttar Bayan Hai

“अपने लोगों की यह कथा जिसे अनेक वर्षों तक मैंने अपने भीतर जिया है...—विद्यासागर नौटियाल

 

‘उत्तर बायां है’ हिमाच्छादित बुग्यालों और ऊँचे, विस्तृत चरागाहों में बरसात के दौरान बर्फ़ के पिघलने के बाद उग आनेवाली मखमली घास और असंख्य ख़ूबसूरत फूलों की ख़ुशबू के बीच अपने पशुओं के साथ विचरण करनेवाली घुमन्तू जाति गूजर और पर्वतीय क्षेत्र के भेड़पालकों और भैंसवालों के समूहों के आपसी सम्बन्धों और परिधि पर बसर कर रहे लोगों के जीवन का साक्षात्कार है। पर्वत शृंग पर बसे भेड़पालकों के गाँव चाँदी और उसकी घाटी में

बसे रैमासी के निवासियों के पेशों, रीतियों और प्रथाओं में पर्याप्त भिन्नता हो जाती है। चाँदी के आकाश में चाँद खुलकर प्रकट होकर कभी अपनी आभा नहीं फैला पाता। चाँदीवासियों का आदिकाल से यह विश्वास चला आया है कि कुछ दुष्ट ग्रह, जो उनके आकाश में विचरण करते हैं, उनके चाँद को हमेशा अपने दबाव में रखते आए हैं, जैसे राहु पूर्णमासी के चाँद को अपने दबाव में कर लेता है। उन दुष्ट ग्रहों के संचालक रैमासी में निवास करते हैं। दिन-रात अथक परिश्रम करनेवाले चंदवालों की कमाई को सदियों से निठल्ले रैमासीवाले हड़प करते आए हैं। सदरू, करणू, हुकम के जीवन में खीजी, कन्हैया, देवीप्रसाद, धनसिंह और रथी सेठ जैसे लोग हमेशा संकट पैदा करते आए हैं, और इन निरीह चंदवालों की क़ीमत पर राजकीय कर्मचारियों, अधिकारियों की मौज-मस्ती, बेकसूर लोगों पर सत्ता के अत्याचार, न्यायालयों की हास्यास्पद भूमिका, भेड़पालकों, ग्रामवासियों, गूजरों के पशुवत् जीवन की झलकियाँ; आयशा, सकीना और हसीना की बेबस ज़िन्दगी के चित्र, हाशिए पर पड़े लोगों के अनवरत संघर्ष, ग़रीबी, उनके सपने, सभ्य तथा कथित विकसित समुदायों द्वारा उनका बाहरी-भीतरी
विनाश! ‘उत्तर बायां है’ में अपने मर्मांतक वर्णन से विद्यासागर नौटियाल इन घुमन्तू और सीमान्त लोगों के जीवन का प्रामाणिक तथा ज़ि‍न्दगी से भरपूर सन्धान करते हैं।

उपन्यास बेचैन करनेवाले यथार्थ और ज़मीनी सच्चाइयों, आपसी रिश्तों को मानवीय गरिमा देने के बीच एक संयत भाषा में आन्दोलित होता रहता है और इन ‘उपेक्षितों’ की पीड़ा से ‘मुख्यधारा’ को आत्यन्तिक मार्मिकता से साक्षात्कार कराता है।

—हम्माद फ़ारूक़ी।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2003
Edition Year 2022, Ed. 2nd
Pages 298p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Editorial Review

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Author: Vidya Sagar Nautiyal

विद्यासागर नौटियाल

29 सितम्बर, 1933 को उत्तर भारत के एक सामन्ती राज्य टिहरी-गढ़वाल में भागीरथी के तट पर बसे प्रसिद्ध गाँव मालीदेवल में वन-अधिकारी पिता नारायणदत्त तथा माता रत्ना के द्वितीय पुत्र तथा तृतीय सन्तान के रूप में जन्म। इस गाँव ने प्रसिद्ध सन्त स्वामी रामतीर्थ को अपनी ओर आकर्षित किया था और उन्होंने अपने स्थायी निवास के लिए यहाँ कुटिया का निर्माण करवाया था। बाद में स्वतंत्रता सेनानी काका कालेलकर ने भी अपने भूमिगत जीवन के छह माह इसी गाँव में बिताए थे।

शिक्षा : प्राथमिक शिक्षा माता-पिता से, रियासत के विद्यालयविहीन सुदूर जंगलों में अपने घर पर। बाद में टिहरी, देहरादून तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में।

प्रजामंडल के सामन्तविरोधी आन्दोलन में सक्रियता के कारण भारत की आज़ादी के बाद पहली गिरफ़्तारी 18 अगस्त, 1947 को टिहरी रियासत में। दशकों में फैला हुआ रचना-कर्म और जन-आन्दोलनों में सक्रिय भागीदारी। 1958 में ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फ़ेडरेशन के उदयपुर अधिवेशन में राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्वाचित। 1980 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के प्रत्याशी के रूप में देवप्रयाग टिहरी-गढ़वाल से उत्तर प्रदेश विधानसभा सदस्य। 1969 से 1995 तक वकालत।

प्रमुख कृतियाँ : ‘पहली कहानी मूक बलिदान’ 1949 में लिखी। ‘भैंस का कट्या’ 1954 में ‘कल्पना’ में प्रकाशित। उपन्यास—‘उलझे रिश्ते’ (1958), ‘भीम अकेला’ (1995), ‘सूरज सबका है’ (1997) तथा ‘उत्तर बायां है’ (2003) में प्रकाशित। कथा-संग्रह—‘टिहरी की कहानियाँ’ (1984) तथा ‘टिहरी की कहानियाँ’ (2000) तथा ‘सुच्ची डोर’ (2003) में प्रकाशित। यात्रा-वृत्तान्त, संस्मरण, डायरी अंश तथा वैचारिक लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।

निधन : 18 फरवरी, 2012

 

 

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