Tulanatmak Saahitya Saiddhantik Pariprekshya

Edition: 2022, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Tulanatmak Saahitya Saiddhantik Pariprekshya

तुलनात्मक साहित्य के विकास की पिछली डेढ़-दो शताब्दियों में बहुत सारे सवालों, संकटों, चुनौतियों और सच्चाइयों से हमारा साक्षात्कार हुआ है। यह बात अब सिद्ध हो चुकी है कि तुलनात्मक साहित्य एक अध्ययन-पद्धति मात्र होने के बजाय एक स्वतंत्र ज्ञानानुशासन का रूप ले चुका है। एकल साहित्य से उसका कोई विरोध नहीं है, बल्कि दोनों के अध्ययन का आधार और पद्धति एक ही तरह की होती है। तुलनात्मक साहित्य का एकल साहित्य अध्ययन से अन्तर अन्तर्वस्तु, दृष्टिबिन्दु और परिप्रेक्ष्य की दृष्टि से होता है।

तुलनात्मक साहित्य अध्ययन को लेकर सबसे बड़ी भ्रान्ति तुलनीय साहित्यों की भाषाओं की विशेषज्ञता को लेकर है। केवल भाषाज्ञान से साहित्यिक अध्ययन की योग्यता या समझ हासिल हो जाना ज़रूरी नहीं है, इसलिए तुलनीय साहित्यों के मूल भाषाज्ञान पर तुलनात्मक साहित्य अध्ययन के प्रस्थान बिन्दु के रूप में अतिरिक्त बल देना इस अनुशासन से अपरिचय का द्योतक है। तुलनीय साहित्यों का भाषाज्ञान और उसमें दक्षता निश्चय ही वरेण्य है और तुलनात्मक साहित्य अध्ययन में साधक भी है, पर अधिकांश अध्ययनों के लिए अनुवाद (निश्चय ही अच्छा अनुवाद) आधारभूत और विकल्प हो सकता है। दरअसल अनुवाद को तुलनात्मक साहित्य के सहचर के रूप में देखना चाहिए।

भारत में तुलनात्मक साहित्य अध्ययन के क्षेत्र में अधिकांश कार्य अंग्रेज़ी में और उसके माध्यम से हुआ है; अतः उसमें तुलनात्मक चिन्‍तन के भारतीय सन्दर्भ बहुत कम हैं। आज तुलनात्मक अध्ययन अनुशासन की उस सैद्धान्तिकी की तलाश अनिवार्य है, जो भारतेतर विचारकों और पश्चिमी चिन्तन को भी ध्यान में रखते हुए भारतीय मनीषा के अन्‍तर्मन्थन से निकली हुई मौलिक अवधारणाओं के सहारे विकसित हो।

प्रस्तुत पुस्तक उपर्युक्त दिशा में आधार विकसित करने का हिन्‍दी में पहला व्यवस्थित उद्यम है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2015
Edition Year 2022, Ed. 2nd
Pages 260p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Hanumanprasad Shukla

Author: Hanumanprasad Shukla

हनुमानप्रसाद शुक्ल

काव्यशास्त्र एवं आलोचना, अनुप्रयुक्त भाषाविज्ञान तथा तुलनात्मक साहित्य-अध्ययन अभिरुचि के मुख्य क्षेत्र। इन अनुशासनों पर केन्द्रित अनेक ग्रन्थ, शोध-लेख एवं आलेख प्रकाशित। अंग्रेज़ी-हिन्‍दी अनुवाद में भी रुचि।

महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्‍दी विश्वविद्यालय के साहित्य विद्यापीठ के अन्तर्गत ‘साहित्य विभाग’ के प्रथम अध्यक्ष और हिन्दी में तुलनात्मक साहित्य के पहले व्यवस्थित विभाग और पाठ्यक्रमों के पुरस्कर्ता। फिर राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर में प्रोफ़ेसर के रूप में कार्य।

सम्प्रति : म.गां.अं.हिं.वि. में भाषा प्रौद्योगिकी विभाग में प्रोफ़ेसर-अध्यक्ष तथा भाषा विद्यापीठ के अधिष्ठाता।

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