यह घनानन्द और सुजान की प्रेमकथा का औपन्यासिक पाठ है। प्रेम और शृंगार की जो ऊँचाई हमें घनानन्द के काव्य में दिखती है, कहते हैं, उसका श्रेय नर्तकी सुजान के सौन्दर्य और प्रेम की गहनता को जाता है।

स्वर्णकार की दुलारी बेटी सुजान साहित्य-संगीत और धर्म आदि की शिक्षा में पारंगत थी लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति के चलते उसे एक रुग्ण व्यक्ति से ब्याह दिया गया। परिणाम कि जल्दी ही उसके सामने वैधव्य आन खड़ा हुआ, और साथ ही दुर्भाग्य भी। अन्तत: शरण मिली आगरा की विख्यात नर्तकी विश्वमोहिनी के यहाँ। वहाँ सुजान की कला पर और रंग चढ़ा।

मुग़ल साम्राज्य के जिस दरबार में घनानन्द मीर मुंशी थे, सुजान वहीं की राजनर्तकी बनी। शहंशाह रँगीले शाह दोनों को समान भाव से सराहते थे। इसी परिवेश में दोनों की प्रेमकथा परवान चढ़ी और सुजान को अपनी नृत्यकला में तो आनन्द को अपने स्वर तथा शब्द-साधना को चरम पर पहुँचाने के लिए दु:ख, पीड़ा और जीवट की खुराक़ मिली।

यह उपन्यास ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और देश-काल की तत्कालीन परिस्थितियों को अंकित करते हुए इस प्रेमकथा को सहानुभूतिपूर्वक शब्दांकित करता है।

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Language Hindi
Publication Year 2007
Edition Year 2007, Ed. 1st
Pages 136p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 17 X 11.5 X 0.5
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Author: Mithilesh Kumari Mishra

मिथिलेश कुमारी मिश्र

जन्म : 01 दिसम्बर, 1953

शिक्षा : हिन्‍दी में डी.लिट्.।

प्रमुख कृतियाँ : ‘देवयानी’, ‘दाक्षायणी’ (महाकाव्य); ‘श्रद्धांजलि’ (खंडकाव्य); ‘धनंजय विजय’ (हिन्दी), ‘आम्रपाली’ (संस्कृत), ‘दि योगी’ (अंग्रेज़ी) (नाटक); ‘सुजान’, ‘वैरागिन’, ‘लवंगी’, ‘अंजना’, ‘कबीर’ (उपन्यास); ‘छँटता कोहरा’ (लघुकथा); ‘चाँदी के चन्‍द्रमा’ (हिन्दी), ‘कामायनी’ (संस्कृत) (गीत-संग्रह)।

सम्‍पादन : बिहार राष्ट्रभाषा परिषद की निदेशक और परिषद की पत्रिका की सम्पादक रहीं। पटना की 135 वर्ष पुरानी संस्कृत की संस्था ‘संस्कृत संजीवन समाज’ की महासचिव होने के साथ संस्कृत शोध त्रैमासिकी ‘संस्कृत संजीवनम्’ की भी सम्पादक रहीं।

विशेष : ‘थाई रामायण’ का विश्व में पहला पद्यानुवाद करने पर थाईलैंड की राजकुमारी ने बैंकाक में हुए साहित्य समारोह में उन्हें सम्मानित किया। ‘गउडवहो’ का प्राकृत से हिन्दी में अनुवाद करनेवाली पहली रचनाकार हैं।

निधन : 9 अप्रैल, 2017

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