Striyon Ki Paradhinta

Edition: 2016, Ed. 5th
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Striyon Ki Paradhinta
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स्त्रियों की पराधीनता’ पुस्तक में मिल पुरुष-वर्चस्ववाद की स्वीकार्यता के आधार के तौर पर काम करनेवाली सभी प्रस्तरीकृत मान्यताओं-संस्कारों-रूढ़ियों को, और स्थापित कानूनों को तर्कों के ज़रिए प्रश्नचिह्नों के कठघरे में खड़ा करते हैं। निजी सम्पत्ति और असमानतापूर्ण वर्गीय संरचना के इतिहास के साथ सम्बन्ध नहीं जोड़ पाने के बावजूद, मिल ने परिवार और विवाह की संस्थाओं के स्त्री-उत्पीड़क, अनैतिक चरित्र के ऊपर से रागात्मकता के आवरण को नोच फेंका है और उन नैतिक मान्यताओं की पवित्रता का रंग-रोगन भी खुरच डाला है जो सिर्फ़ स्त्रियों से ही समस्त एकनिष्ठता, सेवा और समर्पण की माँग करती हैं और पुरुषों को उड़ने के लिए लीला-विलास का अनन्त आकाश मुहैया कराती हैं।

पुरुष-वर्चस्ववाद की सामाजिक-वैधिक रूप से मान्यता प्राप्त सत्ता को मिल ने मनुष्य की स्थिति में सुधार की राह की सबसे बड़ी बाधा बताते हुए स्त्री-पुरुष सम्बन्धों में पूर्ण समानता की तरफ़दारी की है। स्त्री-पुरुष समानता के विरोध में जो उपादान काम करते हैं, उनमें मिल प्रचलित भावनाओं को प्रमुख स्थान देते हुए उनके विरुद्ध तर्क करते हैं। वे बताते हैं कि (उन्नीसवीं शताब्दी में) समाज में आम तौर पर लोग स्वतंत्रता और न्याय की तर्कबुद्धिसंगत अवधारणाओें को आत्मसात् कर चुके हैं लेकिन स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के सन्दर्भ में उनकी यह धारणा है कि शासन करने, निर्णय लेने और आदेश देने की स्वाभाविक क्षमता पुरुष में ही है। स्त्री-अधीनस्थता की समूची सामाजिक व्यवस्था एकांगी अनुभव व सिद्धान्त पर आधारित है।

मिल के अनुसार, प्राचीन काल में बहुत-से स्त्री-पुरुष दास थे। फिर दास-प्रथा के औचित्य पर प्रश्न उठने लगे और धीरे-धीरे यह प्रथा समाप्त हो गई लेकिन स्त्रियों की दासता धीरे-धीरे एक क़िस्म की निर्भरता में तब्दील हो गई। मिल स्त्री की निर्भरता को पुरातन दासता की ही निरन्तरता मानते हैं जिस पर तमाम सुधारों के रंग-रोगन के बाद भी पुरानी निर्दयता के चिह्न अभी मौजूद हैं और आज भी स्त्री-पुरुष असमानता के मूल में ‘ताक़त’ का वही आदिम नियम है जिसके तहत ताक़तवर सब कुछ हथिया लेता है।

—सम्पादकीय से,

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Edition Year 2016, Ed. 5th
Pages 132p
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Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
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John Stuart Mill

Author: John Stuart Mill

जॉन स्टुअर्ट मिल

जन्म : 20 मई, 1806; पेंटनविले, लन्दन।

मृत्यु : 8 मई, 1873; एविन्यॉन (फ़्रांस)

जॉन स्टुअर्ट मिल प्रख्यात ब्रिटिश इतिहासकार, दार्शनिक और अर्थशास्त्री जेम्स मिल के पुत्र थे और दर्शन एवं अर्थशास्त्र में उन्हीं की विचार-परम्परा को कुछ रैडिकल-सुधारवादी ढंग से आगे विकसित करनेवाले योग्य शिष्य भी।

उनका प्रारम्भिक वैचारिक प्रशिक्षण पिता के मार्गदर्शन में हुआ था। पिता के ही माध्यम से वे बेन्थम, ह्यूम, बर्कले और हार्टले के दर्शन, राजनीतिक अर्थशास्त्र से प्रभावित हुए। कोम्त द्वारा स्त्रियों की सामाजिक-घरेलू दासता के जैविक-समाजशास्त्रीय आधार पर औचित्य-प्रतिपादन के ठीक विपरीत मिल ने स्त्रियों को पुरुषों के समान सामाजिक-राजनीतिक अधिकार देने की पुरज़ोर और तर्कपूर्ण वकालत की।

‘हाउस ऑफ़ कॉमन्स' की सदस्यता के दौरान मिल ने 1867 में स्त्रियों को मताधिकार देने का प्रस्ताव रखा था जो पारित नहीं हुआ। इसके तुरन्त बाद उसी वर्ष श्रीमती पी.ए. टेलर, एमिली डेवीज आदि के साथ मिलकर पहली ‘स्त्री मताधिकार सोसाइटी’ की स्थापना भी मिल ने ही की थी। इसके बाद जल्दी ही यह एक देशव्यापी लहर बन गई।

अपनी पुस्तक ‘स्त्रियों की पराधीनता’ मिल 1861 में ही लिख चुके थे, लेकिन वह 1869 में पहली बार प्रकाशित हुई। प्रकाशित होते ही यह पुस्तक व्यापक चर्चा और विवाद का विषय बन गई और कुछ ही वर्षों के भीतर पूरे यूरोप के पैमाने पर स्त्री-आन्दोलन को एक नया संवेग देने में इसने सफलता हासिल की।

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