Sahir Samagra

Shayari
Author: Sahir Ludhianvi
Translator: Aasha Prabhat
Editor: Aasha Prabhat
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Sahir Samagra
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साहिर लुधियानवी को जनसाधारण आम तौर पर फ़िल्मों के गीतकार के रूप में ही जानता-पहचानता है। लेकिन तथ्य यह है कि फ़िल्में उनके जीवन में बहुत बाद में आईं, उससे पहले वे एक प्रगतिशील शायर के तौर पर अपनी बड़ी पहचान बना चुके थे। फ़िल्मों ने बस उन्हें रोज़गार दिया जिसके जवाब में उन्होंने फ़िल्मों को कुछ ऐसे अमर उपहार दिए जिन्हें उन्होंने अपने ऊबड़-खाबड़ और गहरी उदासी में बीते जीवन में कमाया था।

एक ऐसे परिवार में पैदा होकर, जिसका शायरी और अदब से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं था, और एक ऐसे पिता का पुत्र होकर जिसके साथ उनके सम्बन्ध कभी पिता-पुत्र जैसे नहीं रहे और एक ऐसे समाज में जीकर जिसका सस्तापन, नाइंसाफ़ी और संकीर्णताएँ उनकी उदास आँखों से बचकर निकल नहीं पाती थीं, उन्होंने वह कमाया जिसे भले ही उस वक़्त के आलोचकों ने बहुत मान नहीं दिया, लेकिन जो आम आदमी की यादों में हमेशा के लिए पैठ गया। फ़िल्मों में आने से पहले ही वे अपने समय के सबसे लोकप्रिय और चहेते शायरों में शुमार हो चुके थे।

साहिर की ऐसी कई नज़्में और ग़ज़लें हैं, और गीत भी, जिनमें उन्होंने समाज की आलोचना दो-टूक लहज़े में की है। प्रगतिशील आन्दोलन से जुड़े साहिर की चिन्ताओं में गाँव में भूख और अकाल से जूझ रहे किसानों के दु:ख से लेकर शहरों में भूख के हाथों बिकतीं उन औरतों जिन्हें समाज वेश्या कहता है—तक का दर्द एक जैसी गहराई से आया है, जिसका मतलब यही है कि दु:ख को देखना, जीना और पकड़ना, शायर के रूप में यही उनका एकमात्र कौशल था, और इसी के विस्तार में उन्होंने हर माथे की हर सिलवट को पिरोकर तस्वीर बना दिया।

यह किताब उनकी रचनाओं का समग्र है, अभी तक उपलब्ध उनकी तमाम ग़ज़लों, नज़्मों और गीतों को इसमें इकट्ठा करने की कोशिश की गई है। उम्मीद है दर्द-पसन्द पाठकों को इसमें अपना वह खोया घर मिल जाएगा जो इधर की चमक-दमक में खो गया है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2016
Edition Year 2020, Ed. 2nd
Pages 432p
Translator Aasha Prabhat
Editor Aasha Prabhat
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 3.5
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Editorial Review

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Sahir Ludhianvi

Author: Sahir Ludhianvi

साहिर लुधियानवी

साहिर लुधियानवी का जन्म 8 मार्च, 1921 को लुधियाना में हुआ।

प्रमुख कृतियाँ  हैं : ‘तल्ख़ि‍याँ’, ‘परछाइयाँ’, ‘गाता जाए बंजारा’, ‘आओ कि कोई ख़्वाब बुनें’। ये सभी पुस्तकें राजकमल से प्रकाशित ‘साहिर समग्र’ में शामिल हैं। कुछ असंकलित रचनाएँ भी उसमें शामिल हुई हैं। लेकिन पुस्तक ‘गाता जाए बंजारा’ से इस मायने में अलग है, क्योंकि उसमें साहिर के सभी गीत शामिल नहीं थे। इसमें उनके हिन्दी-पंजाबी सभी गीत एकत्र कर दिए गए हैं।

साहिर ने ‘अदब-ए-लतीफ़’, ‘शाहकार’, ‘सवेरा’ आदि पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। ‘सामराज’ और ‘कार्ल मार्क्स’  नामक दो किताबों का अंग्रेज़ी से उर्दू में अनुवाद भी किया।

उन्हें ‘पद्मश्री’, ‘सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड’, ‘महाराष्ट्र स्टेट अवार्ड’, सर्वश्रेष्ठ गीतकार के रूप में दो बार ‘फ़ि‍ल्मफ़ेयर अवार्ड’ आदि से सम्मानित किया गया था। 25 अक्टूबर, 1980 को उनका दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।

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