Purabiyon Ka Lokvritt Via Des-Pardes

Author: Dhananjay Singh
Edition: 2020, 1st Ed.
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
As low as ₹262.50 Regular Price ₹350.00
25% Off
In stock
SKU
Purabiyon Ka Lokvritt Via Des-Pardes
- +
Share:
लोक एक गतिशील सांस्कृतिक संरचना है। वस्तुत: यह उस सामूहिक विवेकशील जीवन-पद्धति का नाम है जो सहज, सरल और भौतिकवादी होने के साथ-साथ अपनी जीवन्त परम्पराओं को अपने दैनिक जीवन के संघर्ष से जोड़ती चलती है। यह लोकमानस को आन्दोलित करने का सामर्थ्य रखती है। एक समाजशास्त्रीय अवधारणा के रूप में उसे समझने की चेष्टाएँ अक्सर उसकी अन्दरूनी गतिशीलता और परिवर्तनशीलता की अनदेखी करती चलती हैं। इसके चलते यह मान लिया जाता है कि लोकसंस्कृति प्राक्-आधुनिक समाज की संस्कृति है और इस समाज के विघटन के साथ लोक को भी अन्तत: विघटित होना ही है। समाजविज्ञानों के पास एक ऐसे लोक की कल्पना ही नहीं है जो आधुनिकता के थपेड़े खाकर भी जीवित रह सके। सच्चाई यह है कि वास्तविकता के धरातल पर लोक न सिर्फ़ विद्यमान है बल्कि अपार जिजीविषा के लिए सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव के साथ क़दम मिलाते हुए वह निरन्तर अपने को बदलने का प्रयत्न भी कर रहा है। लोक का सामना कामनाओं की बेरोक-टोक स्वतंत्रता पर आधारित जिस भोगमूलक संस्कृति से हो रहा है, उसके पीछे साम्राज्यवाद की अनियंत्रित ताक़त भी है। यह किसी भी समाज की बुनियादी मानवीय आकांक्षाओं को नकारकर अपने निजी हितों के अनुकूल, उसकी प्राथमिकताओं को मोड़ने में समर्थ है। इस पुस्तक में पूरबिया संस्कृति के अनुभवाश्रित विश्लेषण, उसकी जिजीविषा और कामकाज के सिलसिले में स्थानान्तरण के परिप्रेक्ष्य में उसके सामने मौजूद चुनौतियों का अध्ययन किया गया है।
More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2020
Edition Year 2020, 1st Ed.
Pages 247p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
Write Your Own Review
You're reviewing:Purabiyon Ka Lokvritt Via Des-Pardes
Your Rating
Dhananjay Singh

Author: Dhananjay Singh

धनंजय सिंह

24 दिसम्बर, 1979 को बिहार के भोजपुर ज़िले के कुसुम्हाँ गाँव में जन्म। प्रारम्भिक शिक्षा ग्रामीण परिवेश में लेकिन उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली आना हुआ जहाँ से डॉक्टरेट तक शिक्षा प्राप्त की।

दिल्ली विश्वविद्यालय में ही कई वर्ष अध्यापन; भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला और नेहरू मेमोरियल म्यूज़ियम एंड लाइब्रेरी, तीनमूर्ति में फ़ेलो रह चुके हैं; प्रवासी श्रम इतिहास मौखिक स्रोत : भोजपुरी लोकसाहित्य, ‘प्रवासी श्रमिकों की संस्कृति और भिखारी ठाकुर का साहित्य’, ‘भिखारी ठाकुर और लोकधर्मिता’ इत्यादि किताबों के अलावा अनेक पत्र-पत्रिकाओं में लेखन किया है। फ़िलहाल पॉन्डिचेरी के यानम ज़िले में एक राजकीय डिग्री कॉलेज में अध्यापन के साथ प्रवासी पुरबियों की दृश्य-संस्कृति पर शोध कर रहे हैं।

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top