Punarutthan

Fiction : Novel
Author: Leo Tolstoy
Translator: Bhishma Sahni
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Punarutthan

आधुनिक इतिहास में यदि किसी विचारक-लेखक की ख्याति उसकी ज़िन्दगी में ही पूरी दुनिया में फैल चुकी थी और जीते-जी ही वह एक मिथक बन गया था, तो वे लेव तोल्स्तोय ही थे। उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के साहित्यिक परिदृश्य पर जिस तरह बाल्ज़ाक छाए हुए थे, उसी तरह उत्तरार्द्ध के साहित्यिक परिदृश्य पर तोल्स्तोय का प्रभाव-साम्राज्य फैला हुआ था।

‘पुनरुत्थान’ एक नए प्रकार का उपन्यास था जिसमें पात्रों के गहन आत्मसंघर्ष और रूपान्तरण के साथ ही, सेंट पीटर्सबर्ग के दरबार के लोगों और ग्रामीण कुलीनों से लेकर किसानों, क़ैदियों और साइबेरिया-निर्वासन पर जा रहे क़ैदियों के चरित्रों के माध्यम से तत्कालीन रूस के समूचे वैविध्यपूर्ण सामाजिक परिदृश्य को एक इतिहासकार-सदृश वस्तुपरकता और अधिकार के साथ उपस्थित कर दिया गया है। कात्यूशा का मुक़दमा और उसमें जूरी सदस्य के रूप में नेख्लूदोव की उपस्थिति सामाजिक अन्याय पर आधारित जीवन की निरर्थकता और न्यायतंत्र की कुरूपता को एकदम नंगा कर देती है।

‘पुनरुत्थान’ में तोल्स्तोय सरकार, न्यायालय, चर्च, कुलीन भूस्वामियों के विशेषाधिकारियों, भूमि के निजी स्वामित्व, मुद्रा, जेलों और वेश्यावृत्ति की मर्मभेदी आलोचना करते हैं। घनी और शक्तिशाली लोगों द्वारा उत्पीड़ित निम्न वर्गों के प्रति सहानुभूति-प्रदर्शन पर उपन्यास तीखा व्यंग्य करता है। किसानों, क्रान्तिकारियों और निर्वासित अपराधियों सहित सामान्य जनसमुदाय का चित्रण करते हुए तोल्स्तोय का ज़ोर इस बात पर है कि उत्पीड़न और अधिकारहीनता ने आमजन की आत्मिक शक्तियों को पंगु बना डाला है।

More Information
Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2007
Edition Year 2007, Ed. 1st
Pages 439p
Translator Bhishma Sahni
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Editorial Review

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Leo Tolstoy

Author: Leo Tolstoy

लेव तोल्स्तोय

जन्म : 9 सितम्बर (पुराने कैलेंडर के हिसाब से 28 अगस्त), 1828; रूसी साम्राज्य के तूला प्रान्त की यास्नाया पोल्याना जागीर में।

आधुनिक इतिहास में यदि किसी विचारक-लेखक की ख्याति उसकी ज़िन्दगी में ही पूरी दुनिया में फैल चुकी थी और जीते-जी ही यदि वह एक मिथक बन गया था, तो वे निस्सन्देह लेव तोल्स्तोय ही थे।

उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध के साहित्यिक परि:दृश्य पर जिस तरह बाल्ज़ाक छाए हुए थे, उसी तरह उत्तरार्द्ध के साहित्यिक परि:दृश्य पर तोल्स्तोय का प्रभाव-साम्राज्य फैला हुआ था।

आम तौर पर, तोल्स्तोय को उनके दो वृहद् और महान उपन्यासों—‘युद्ध और शान्ति’ तथा ‘आन्ना कारेनिना’ के लिए जाना जाता है। इनकी गणना निर्विवाद रूप से, अब तक लिखे गए दुनिया के सर्वोत्कृष्ट उपन्यासों में की जाती है। कुछ लोग उनके तीसरे प्रसिद्ध उपन्यास ‘पुनरुत्थान’ को भी इसी कोटि में शामिल करते हैं। उनकी एक और चर्चित कृति ‘इवान इलिच की मौत’ की गणना उपन्यासिका के सर्वश्रेष्ठ उदाहरणों में की जाती है।

अपने अन्तिम तीस वर्षों के दौरान एक धार्मिक और नैतिक शिक्षक के रूप में उन्हें विश्वस्तरीय ख्याति मिली। बुराई का प्रतिरोध न करने के उनके सिद्धान्त का गाँधी पर भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा था। दुनिया आज तोल्स्तोय की धार्मिक मान्यताओं को भुला चुकी है, लेकिन साहित्यकार तोल्स्तोय की ख्याति आज भी अक्षुण्ण है और विश्व-साहित्य की क्लासिकी सम्पदा में अद्वितीय अभिवृद्धि करनेवाले महान साहित्य-सर्जक के रूप में उन्हें शताब्दियों बाद ही नहीं, बल्कि सहस्राब्दियों बाद भी याद किया जाएगा।

निधन : 20 नवम्बर (पुराने कैलेंडर के अनुसार, 7 नवम्बर) 1910; अस्तापोवो, रूस।

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