Premchand : Ek Talaash

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Premchand : Ek Talaash

‘प्रेमचन्द : एक तलाश’ रचनात्मक आलोचना का एक अनूठा उदाहरण है। आलोचक श्रीराम त्रिपाठी ने वस्तुत: हिन्दी और उर्दू में समानरूपेण समादृत अमर कथाशिल्पी मुंशी प्रेमचन्द को उनकी रचनाओं में तलाश किया है।

‘प्रस्तावना’ में श्रीराम त्रिपाठी लिखते हैं—जिस तरह कबीर हिन्दू–मुस्लिम के नहीं, समाज के निम्नतम, मगर मेहनतकश लोगों के साथ हैं, उसी तरह प्रेमचन्द हैं। वे न हिन्दी के हैं, न उर्दू के। वे हिन्दी–उर्दू के हैं। देवनागरी लिपि का मतलब हिन्दी नहीं होता और न फ़ारसी लिपि का मतलब उर्दू। प्रेमचन्द को समझने के लिए उनके श्रेष्ठतम से रू-ब-रू होना पड़ेगा। यह तभी सम्भव है, जब दोनों भाषाओं की रचनाओं की तुलना करके श्रेष्ठतम को छाँटकर अलग किया जाए और वही दोनों भाषाओं में अनुवादित होकर नहीं, लिप्यन्तरित होकर पहुँचे। मसलन, ‘ईदगाह’, ‘नमक का दारोग़ा’ और ‘शतरंज के खिलाड़ी’ का उर्दू रूप निश्चित तौर पर हिन्दी रूप से श्रेष्ठ है। फिर, क्यों न हिन्दी पाठकों को वही मुहैया कराया जाए। आजकल हिन्दी की रचनाओं में धड़ल्ले से देशज, अरबी, फ़ारसी और अंग्रेज़ी के शब्द आते हैं और ज़रूरत पड़ने पर उनके अर्थ फुटनोट में दे दिए जाते हैं, तो प्रेमचन्द के साथ ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता।

पुस्तक की सामग्री तीन खंडों में है—लिप्यन्तर, तुलना और समीक्षा। उपसंहार के अन्तर्गत भी अत्यन्त उपयोगी सामग्री है। उदाहरणार्थ, पुस्तक में विवेचित कहानियों की उर्दू व हिन्दी में प्रथम प्रकाशन की सूचना। साथ ही, इन कहानियों में आए उर्दू शब्दों के अर्थ। निस्सन्देह, प्रेमचन्द की रचनात्मक मानसिकता को समझने में यह पुस्तक एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2013
Edition Year 2013, Ed. 1st
Pages 272p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Shriram Tripathi

Author: Shriram Tripathi

श्रीराम त्रिपाठी

जन्म : 5 जुलाई, 1957; गोरखपुर ज़िले के भरोहिया नामक गाँव में।

शिक्षा : इंटरमीडिएट तक की शिक्षा गोरखपुर के आसपास के गाँवों में। इसके बाद शिक्षा में विराम और आजीविका के रूप में बाबूगीरी से लेकर कारख़ाने की मजूरी-कारीगरी। 1983 से विरमित शिक्षा का पुनः प्रारम्भ, फलस्वरूप 1995 में गुजरात यूनिवर्सिटी से पीएच.डी.। 1988 से गुजरात के पंचमहल ज़िले की एक तहसील सन्तरामपुर के आदिवासी आर्ट्स एंड कॉमर्स कॉलेज में हिन्दी अध्यापन।

प्रकाशन : 1990 में पहली कहानी ‘अपना गाँव’ प्रकाशित। 1997 में ‘भूख’ कहानी-संग्रह तथा 2002 में ‘धूमिल और परवर्ती जनवादी कविता’ शोध-प्रबन्ध प्रकाशित। ‘प्रेमचन्द : एक तलाश’ एक चर्चित कृति। हिन्दी की लगभग सभी स्तरीय पत्रिकाओं में समय-समय पर कहानी, निबन्ध और समीक्षाएँ प्रकाशित।

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