डॉ. रामानंद तिवारी ने कबीर पर ‘पिंजर प्रेम प्रकासिया’ शीर्षक से प्रबंध-काव्य रचकर असामान्य कार्य किया है। यह साधारण कार्य नहीं था। कबीर के जीवन-चिन्तन और उनकी साधना को काव्य के प्रवाह में बाँध पाना साहस का काम है जिसे रामानंद जी ने किया है। शायद यह रामानंद नाम का ही प्रभाव है जिससे कबीर का यह ग्रन्थावतार सम्भव हुआ।
कबीर के समय धार्मिक/साम्प्रदायिक आग्रहों, आर्थिक विषमता, पारिवारिक-सामाजिक रीतियों-कुरीतियों का संश्लिष्ट, किन्तु प्रवाहमान रूप इस काव्य में दिखलाई पड़ता है। पंक्तियों को ध्यान से देखें तो इसमें ‘कामायनी’ का छेद-प्रवाह कहीं-कहीं सुनाई पड़ता है—"झूमते हैं धरती-आकाश/मेघ जब बरसाते हैं नीर/स्रोत सब बनते एक प्रवाह/देख मन होता अधिक अधीर।’’
कबीर के विद्रोही जीवन-संघर्ष और आध्यात्मिक साधना का पर्यवसान जिस लोक-मंगल की साधना में किया गया है, वह आधुनिकता का सन्देश है जिसे रचनाकार ने प्रबन्धत्व में समो लिया है, यह बड़ी बात है और रचना की सफलता है।
कबीर के जीवन-चिन्तन, संघर्ष को कविता में बाँधना या गद्य में, उपन्यास में बाँधना—कौन ज़्यादा उचित है, यह एक अलग प्रश्न है। तिवारी जी ने कबीर-जीवन के भाव-पक्ष और आध्यात्मिक औदात्य को प्रधानत: दृष्टि में रखकर उसी में उनके बीहड़ पक्ष का समावेश किया है। हो सकता है, इसमें प्रबन्धत्व क्षीण लगता हो; किन्तु काव्य गहन विचारों, सार्वभौमिक, सार्वदेशिक भावित काव्य-पंक्तियों से भरपूर है। आधुनिक कबीर को प्रस्तुत करने का यह सार्थक प्रयास सर्वथा अभिनंदनीय है।
—विश्वनाथ त्रिपाठी
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2019 |
Edition Year | 2019, 1st Ed. |
Pages | 202p |
Publisher | Lokbharti Prakashan |