Patrakarita : Parivesh Aur Pravrittiyan

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Patrakarita : Parivesh Aur Pravrittiyan

आज के समाचार-पत्र साध्य और साधन दोनों हैं। वे करुणा भी हैं और चेतना भी; दृष्टि भी हैं और ज्ञान भी; बोध भी हैं और व्याप्ति भी; इतिहास की तिथि भी हैं और भूगोल की परिधि भी; सन्तुलन भी हैं और मर्यादा भी। इसीलिए जनतंत्र की जितनी बड़ी जवाबदेही पत्रों और पत्रकारों का है, कदाचित् किसी और की नहीं।

हर किसी को आज भारतीय पत्रकारिता से बहुत बड़ी आशा है और अपेक्षा भी। संयुक्त राज्य अमेरिका में ‘पेंटागन-पत्रों का प्रकाशन’ और ‘वाटरगेट कांड’ का रहस्योद्घाटन भारतीय पत्रकारिता के लिए भी चुनौती है। हमारे यहाँ भी कई रहस्य ज्यों के त्यों पड़े हैं और उन पर समय का मलबा पड़ता जा रहा है, जिसका कोई वस्तुत: निर्भीक पत्रकार ही रहस्योद्घाटन कर सकता है। ऐसे उदाहरणों की कमी नहीं, जब भारतीय पत्रकारों ने मामले उठाए हैं। आज भी हवा के बवंडर के समान कई प्रश्न आन्दोलित हो रहे हैं। उनके उत्तर प्रतीक्षा में हैं कि ‘कार्लबर्न स्टोन’ और ‘बुडवर्ड’ के समान कोई पत्रकार आगे बढ़कर रहस्यों का उद्घाटन कर दे।

आज आर्थिक और राजनीतिक समस्याएँ, फिर भले ही वे राष्ट्रीय हों अथवा अन्तरराष्ट्रीय, इतनी क्लिष्ट और संश्लिष्ट हो गई हैं कि उनकी पृष्ठभूमि और पेचीदगियों को सही-सही जानना-समझना अतीव आवश्यक हो गया है। इन्हें विशेषज्ञ ही समझा सकते हैं और वे विशेषज्ञ हैं, सुलझे हुए और अनुभवी पत्रकार।

पत्रकार को आज विषम स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति में यदि उसका ध्यान दायित्व की अपेक्षा अपने ‘बचाव’ पर अधिक रहता है तो इसमें आश्चर्य की कौन-सी बात है; फिर दायित्व की मर्यादा को आज की राजनैतिक और आर्थिक व्यवस्था जीवित रहने की इजाज़त कहाँ देती है? राजनीति को पेशा बनानेवालों ने ही क्या पत्रकारों को भी प्रथमत: पेशा मानने के लिए बाध्य नहीं किया है। समाचार-पत्र-जगत पर छाए व्यवसायीकरण के लिए कौन ज़िम्मेदार है? सुविधाएँ देने का प्रलोभन देकर पत्रकारों को अपने पक्ष में बनाए रखने का दुराचार कौन करता है? कौन यह नहीं समझने का भूल दोहराता रहता है कि पत्रकार भी मानव-समाज का एक अंग है और वह भी मानवीय दुर्बलताओं से परे नहीं है। कौन इस सत्य को स्वीकार करने से कतराता है—व्यक्ति-विशेष ही तपस्वी हो सकता है, पूरा समुदाय नहीं?

पत्रकारिता-जगत के लब्ध-प्रतिष्ठ पत्रकार डॉ. पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने अपनी इस कृति में पत्रकारिता की परिवेश-प्रवृत्तियों पर सांगोपांग और समीचीन प्रकाश डालते हुए अपनी वस्तुपरक दृष्टि का सम्यक् परिचय दिया है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2001
Edition Year 2001, Ed. 1st
Pages 282p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 2
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Author: Prithvi Nath Pandey

पृथ्वीनाथ पाण्डेय

जन्म : 1 जुलाई, 1959 को मिरीगिरी टोला, बाँसडीह, बलिया (उत्तर प्रदेश)।

प्रमुख कृतियाँ : ‘मानक हिन्दी-निबन्ध’, ‘मानक हिन्दी व्याकरण’, ‘पत्रकारिता : परिवेश और प्रवृत्तियाँ’, ‘अनोखे ग्रह के विचित्र प्राणी’, ‘आवर्तन और दरार’, ‘दक्षिण अफ्रीका में रंग क्रान्ति’, ‘प्रामाणिक हिन्दी शब्दकोश’, ‘शून्य से शिखर तक डॉ. अब्दुल कलाम’, ‘प्रामाणिक हिन्दी भाषा और साहित्य’, ‘विज्ञान के बढ़ते कदम’, ‘मानव जीवन और विज्ञान’, ‘सामान्य हिन्दी इन्साइक्लोपीडि‍या’, ‘विज्ञान इन्साइक्लोपीडि‍या’, ‘प्रकाश और किरणें इन्साइक्लोपीडि‍या’, ‘मानव-विकल्प बनता कम्प्यूटर’, ‘मानक वि‍ज्ञान शब्दकोश’, ‘मानक मुहावरा-कहावत कोश’, ‘मानक सूक्ति कोश’, ‘मानक पर्याय शब्दकोश’, ‘सामान्य हिन्दी इन्साइक्लोपीडि‍या’, ‘ओलिम्पिक इन्साइक्लोपीडि‍या’, ‘प्रामाणिक हिन्दी-निबन्ध’, ‘प्रयोगशाला इन्साक्लोपीडि‍या’, ‘मीडि‍या : आयाम और प्रतिमान’, ‘शुद्ध हिन्दी : कैसे बोलें, कैसे लिखें’, ‘आधुनिक हिन्दी व्याकरण’, ‘वन्यजीव और पर्यावरण’ आदि।

सम्मान : ‘बालसाहित्यश्री’ (इन्दौर, म.प्र.), ‘राहुल सांकृत्यायन सम्मान’ (देवघर, बिहार), ‘बालसाहि‍त्य-भूषण सम्मान’ (बलिया, उ.प्र.), ‘बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ पुरस्कार’ (देहरादून, तब उ.प्र.), ‘गणेशशंकर विद्यार्थी पुरस्कार’ (जमशेदपुर, बिहार), ‘पराड़कर पुरस्कार’ (कोलकाता,
प. बंगाल), ‘डॉ. मेघनाद साहा पुरस्कार’ (अहमदाबाद, गुजरात), ‘पं. सोहलनलाल द्विवेदी पुरस्कार’ (नागपुर, महाराष्ट्र), ‘आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी पुरस्कार’ (आगरा, उ.प्र.), ‘मीडिया-विशेषज्ञ सम्मान’ (एर्नाकुलम, केरल), ‘डॉ. बीरबल साहनी पुरस्कार’ (लखनऊ, उ.प्र.), ‘हिन्दी-भाषा-भूषण सम्मान’ (जयपुर), ‘साहित्य वाचस्पति’ (देहरादून, उत्तराखंड), ‘यू.एस.ए. सुपर्व बॉयो-इंटरनेशनल अवार्ड’ (संयुक्त राज्य अमेरिका), ‘ए पर्सनैलिटी ऑव एशिया एंड पैसिफ़िक ऑनर’ (संयुक्त राष्ट्रसंघ) आदि।

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