‘पाँचवाँ दस्ता और सात कहानियाँ’ में बीसवीं सदी के बहुत बड़े गद्यशिल्पी के रूप में जाने-माने रचनाकार अमृतलाल नागर की 1945 से 1970 के कालखंड की कुछ चुनी हुई कहानियों संकलित हैं।
नागर जी की कहानियों में किस्सागोई का तत्त्व प्रबल रूप से मौजूद है। उनका कहना था ‘मेरा मालिक आम पाठक है जिसमें अमीर भी है और गरीब भी।’ इसलिए किस्सागोई की रुचि को मैंने जनरुचि और जनरुचि को किस्सा बनाकर ही पेश करने की कोशिश की।
रामविलास शर्मा के अनुसार ‘देश के एकीकरण में नागर जी का योगदान यह है कि अपने कथा-साहित्य में ढेर-सारे मुसलमान पात्रों को जगह देकर, उन्हें हिन्दी जातीयता में भागीदार दिखाकर, उन्होंने साम्प्रदायिक अलगाववाद पर जबर्दस्त प्रहार किया है और राजनीतिज्ञों का मार्गदर्शन किया है।’
इस संग्रह की रचनाएँ नागर जी के विस्तृत कथा-संसार की बहुरंगी झाँकियाँ प्रस्तुत करने के साथ ही उनके सामाजिक सरोकारों तथा उनकी संवेदनाओं से साक्षात्कार कराती हैं।
Language | Hindi |
---|---|
Binding | Hard Back |
Publication Year | 1970 |
Edition Year | 2011, Ed. 2nd |
Pages | 152p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14.5 X 1 |