आज़ादी के समय देश के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती भावी शासन-व्यवस्था में सामन्तवाद को प्रभावी होने से बचाना था। समाज में व्याप्त सामन्तवाद के ख़िलाफ़ लड़ते रहनेवाले बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर द्वारा संविधान-निर्माण के दौरान इस चुनौती से किस तरह निपटा गया? इसका जवाब खोजने के साथ संविधान में ‘देश के नाम’, ‘राज्यक्षेत्र’, ‘मूल अधिकार’, ‘नीति-निर्देशक सिद्धान्त’ से सम्बन्धित अनुच्छेद 1 से 51 तक के प्रावधानों को अन्तिम रूप देने के लिए संविधान सभा में हुई बहस को सरल भाषा में प्रस्तुत करने का प्रयास इस पुस्तक में किया गया है।
बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर की जीवनी में रूचि रखनेवाले देशवासियों के समक्ष आज़ादी के आन्दोलन में डॉ. अम्बेडकर की भूमिका को सन्देह के घेरे में रख तरह-तरह के सवाल किए जाते हैं, इस पुस्तक में इसका भी जवाब खोजने का प्रयास किया गया है।
देश की ग़ुलामी के लिए उत्तरदायी रही भारतीय समाज की सामन्तवादी प्रवृत्ति को समाप्त करने एवं देश को आन्तरिक ग़ुलामी से मुक्त कराने में बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर द्वारा किए गए संघर्ष और उनके विचार का विश्लेषणात्मक अध्ययन इस पुस्तक के माध्यम से किया गया है।
बिलकुल विपरीत परिस्थिति में भारत जैसे सांस्कृतिक विविधता वाले देश के लिए सर्वमान्य संविधान के निर्माण में डॉ. अम्बेडकर एवं अन्य संविधान निर्माताओं की भूमिका का भी विश्लेषणात्मक अध्ययन इस पुस्तक के माध्यम से किया गया है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2017 |
Edition Year | 2018, Ed. 2nd |
Pages | 320p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 2 |