Muktibodh Ki Kavya Srishti

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Muktibodh Ki Kavya Srishti

आधुनिक हिन्दी काव्य-साहित्य के इतिहास में निराला के बाद मुक्तिबोध एक ऐसे कवि के रूप में सदैव याद किए जाएँगे जिनका जीवन ही उनकी कविता होती है। जिसकी कथनी और करनी में कोई अन्तर नहीं होता है।

मुक्तिबोध के काव्य का निर्माण चेतना को झकझोर देनेवाले अन्तःसंघर्ष, उनके अभिशप्त युग तथा व्यक्तित्व के सन्धान से उपजा है। वस्तुत: उनकी कविताओं का पेचीदापन इसी अन्तःसंघर्ष की उपज है। लेकिन अपने युग को अर्थ और वाणी देने से अधिक और क्या सार्थक कार्य कोई कवि कर सकता है!

मुक्तिबोध का काव्य इस चुनौती को स्वीकार करता है तथा अपने युग की भयावहता को पूर्णता के साथ रूपायित भी करता है।

यह सच है कि मुक्तिबोध एक प्रतिबद्ध कवि हैं लेकिन उनकी प्रतिबद्धता को किसी वाद-विशेष से जोड़कर ही यदि देखा जाता रहा तो यह उनकी काव्य-प्रतिभा के साथ अन्याय ही होगा। वस्तुत: उनकी प्रतिबद्धता तो वैश्विक स्तर पर श्रमशील मानव के प्रति ही रही है। प्रस्तुत पुस्तक मुक्तिबोध की काव्य-संवेदना को इसी दृष्टिकोण से समझने का प्रयास है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2004
Edition Year 2004, Ed. 1st
Pages 128p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Suresh Rituparna

Author: Suresh Rituparna

सुरेश ऋतुपर्ण

सन् 1949 में मथुरा में जन्म।

दिल्ली विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए., एम.लिट्. एवं पीएच.डी. की उपाधि। ‘नयी कविता में नाटकीय तत्त्व’ विषय पर शोधकार्य।

सन् 1971 से 2002 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज में अध्यापन।

1988 से 1992 तक ट्रिनीडाड एवं टुबैगो स्थित भारतीय हाई कमीशन में राजनयिक के रूप में प्रतिनियुक्ति।

सन् 1999 से 2002 तक मॉरिशस स्थित महात्मा गांधी संस्थान में ‘जवाहरलाल नेहरू चेयर ऑफ़ इंडियन स्टडीज़’ पर अतिथि आचार्य के रूप में कार्य।

‘मुक्तिबोध की काव्य-सृष्टि’ व ‘हिन्दी की विश्व-यात्रा’, ‘मुट्ठियों में बन्द आकार’, ‘द विक’, ‘निकन्धायन’, ‘फ़िजी में सनातन धर्म’, ‘जापान की लोककथाएँ’ सहित कई पुस्तकें प्रकाशित। सन् 1980 में प्रथम कविता-संग्रह ‘अकेली गौरैया देख’ प्रकाशित एवं उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा पुरस्कृत।

अमेरिका, जापान, कनाडा, ट्रिनीडाड, सूरीनाम, गयाना, फ़िजी, मॉरिशस, फ़्रांस, जर्मनी, इटली आदि के अतिरिक्त यूरोप के अनेक देशों की यात्राएँ एवं दीर्घ प्रवास।

‘विश्व हिन्दी न्यास’ (न्यूयॉर्क, अमेरिका) के अन्तरराष्ट्रीय समन्वयक एवं त्रैमासिक पत्रिका ‘हिन्दी जगत’ के प्रबन्ध सम्पादक।

विदेशों में हिन्दी प्रचार-प्रसार के लिए भारतीय विद्या संस्थान, ट्रिनीडाड द्वारा ‘ट्रिनीडाड हिन्दी भूषण सम्मान’। हिन्दी फ़ाउंडेशन ऑफ़ ट्रिनीडाड एवं टुबैगो द्वारा ‘हिन्दी निधि सम्मान’ एवं उ.प्र. हिन्दी संस्थान द्वारा वर्ष 2004 में ‘विदेश हिन्दी प्रचार सम्मान’, ‘फ़ादर कामिल बुल्के सम्मान’, ‘सरस्वती साहित्य सम्मान’ आदि से सम्मानित।

जापान के ‘तोक्यो यूनिवर्सिटी ऑफ़ फ़ॉरेन स्टडीज़’ में प्रोफ़ेसर पद पर भी कार्य।

सम्प्रति : निदेशक, के.के. बिरला फ़ाउंडेशन।

ई-मेल : mrituparna52@hotmail.com

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