हिन्दी गीत-काव्य की एक प्रशस्त परम्परा है। छन्दमुक्त कविता के तमाम आन्दोलनों एवं आग्रहों के बावजूद गीत नए-नए सन्दर्भों में प्रस्फुटित हो रहे हैं। सुप्रसिद्ध कवयित्री माया गोविन्द का प्रस्तुत गीत-संग्रह ‘माया राग’ हिन्दी गीतों की संवेदना को संवर्धित करता है। संग्रह में भावनाओं की प्रचुरता है। कहा जा सकता है कि बौद्धिकता पर हार्दिकता का काव्यात्मक प्रकाश फैला हुआ है।

माया गोविन्द हिन्दी काव्य मंचों की श्रीवृद्धि करती रही हैं। उन्होंने हिन्दी सिनेमा में अपने स्तरीय गीतों से गीतात्मकता की गुणवृद्धि की है। यही कारण है कि उनके गीतों में लय की अद्भुत छटाएँ मिलती हैं। ऐसा लगता है कि गीत गाए जाने के बाद लिखे गए हैं। इनमें जीवन की विभिन्न स्थितियाँ हैं। फिर भी, यह कहना अधिक उचित होगा कि माया गोविन्द ने एक स्त्री की दृष्टि से इस सृष्टि को देखा है। इसीलिए ये गीत स्त्री की पीड़ा को सशक्त ढंग से अभिव्यक्त करते हैं। आसक्ति और अनासक्ति के बीच व्याकुल मन की थाह माया गोविन्द ने भली-भाँति लगाई है। सावन और होली आदि के बहाने जीवन के उत्सव की विविध छटाएँ व्यंजित हुई हैं। कहीं-कहीं अद्भुत कथन उभरे हैं—‘प्यास की रुक्मिणी का करो तुम हरण’ या ‘अधरों पर अधर जैसे, इन्द्रधनुष की लकीर’।

भाषा, भाव और शैली की दृष्टि से ‘माया राग’ के गीत निश्चित रूप से पाठकों के हृदय को आन्दोलित करेंगे।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2012
Edition Year 2012, Ed. 1st
Pages 131p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Maya Govind

Author: Maya Govind

माया गोविन्द

जन्म : 17 जनवरी; लखनऊ (उ.प्र.)।

शिक्षा : लखनऊ विश्वविद्यालय से बी.ए., बी.एड.। चार वर्षों तक अध्यापन कार्य। संगीत एवं साहित्य में बचपन से ही रुचि, नृत्य-गायन की विधिवत् तालीम ली।

बचपन से ही कविता-लेखन। काव्य-पाठ सन् 1959 में दिल्ली के लाल क़िला कवि सम्मेलन से प्रारम्भ हुआ। तत्पश्चात् देश-विदेश के सैकड़ों कवि-सम्मेलनों एवं गोष्ठियों में भाग लिया। हिन्दी, उर्दू, ब्रज एवं अवधी में काव्य-रचना। माया गोविन्द की रचनाओं में रीतिकालीन शृंगार तथा पारलौकिकता विद्यमान है।

प्रमुख कृतियाँ : ‘सुरभि के संकेत’, ‘दर्द का अनुवाद’ (गीत-संग्रह); ‘तुम्हें मेरी क़सम’ (ग़ज़ल, नज़्म); ‘कृष्णमयी’ (ब्रजभाषा पद); ‘चाँदनी की आग’ (मुक्तछन्द); ‘सुनो हे पार्थ’ (भगवत गीता की काव्यमय प्रस्तुति); ‘छन्दरस माधुरी’ (ब्रजभाषा और अवधी के छन्दों का संग्रह); ‘सुमिरन कर ले मेरे मना’ (भजन-संग्रह)।

विशेष : हेमा मालिनी द्वारा प्रस्तुत बैले ‘मीरा’ का लेखन, जिसकी प्रस्‍तुति स्वर्ण जयन्ती मंचों पर हो चुकी। सन् 1972 से मुम्बई में फ़िल्मों के लिए गीत-लेखन। अनेक टीवी धारावाहिकों में गीत-लेखन। भजन, गीत एवं ग़ज़लों के दर्जनों एलबम जारी।

सम्मान : दो बार ‘फ़िल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन अवार्ड’ (उ.प्र.), ‘सर्वश्रेष्ठ गीतकार’ (फ़िल्म वर्ल्ड), ‘स्वामी हरिदास पुरस्कार’ (सुरसिंगार संसद), ‘दशक की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री पुरस्कार’ (हिन्दी समिति वाशिंगटन), ‘हिन्दी काव्य सम्मान’ (विश्व हिन्दी समिति, न्यूयॉर्क), ‘उत्तर प्रदेश रत्न सम्मान’ (उत्तर भारतीय संघ), ‘आशीर्वाद पुरस्कार’, ‘इंडियन टेलीविज़न एकेडमी अवार्ड’ (टीवी सीरियल ‘मायका’ और ‘फुलवा’ के लिए), ‘महादेवी वर्मा सम्मान लखनऊ’, ‘निराला पुरस्कार’ (साहित्य कला मंच, मुम्बई) आदि।

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