Mahabazar Ke Mahanayak-Hard Back

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9789388753067
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सिनेमा कला का वह रूप है जो बाज़ार की शर्तों पर भी चलता है, और बाज़ार के लिए नई शर्तें और मे'आर भी तय करता है। भारत में यही एकमात्र आर्ट है जिसकी रचना बाज़ार को ध्यान में रखकर की जाती है; वह बाज़ार जिसमें जनता ख़रीदार है, उसी की पसन्द-नापसन्द से सिनेमाई उत्पाद का भविष्य तय होता है। प्रहलाद अग्रवाल हिन्दी के उन गिने-चुने लेखकों में हैं जिन्होंने सिनेमा के उतार-चढ़ाव पर हमेशा निगाह रखी है, नए ट्रेंड्स को पकड़ा है, सामाजिक-राजनीतिक सन्दर्भों में उनकी व्याख्याएँ की हैं, और फ़िल्मी गॉसिप की जगह सिनेमा का एक भाषिक विमर्श रचने का प्रयास किया है। इस पद्यात्मक किताब में वे यही काम थोड़ा अलग ढंग से कर रहे हैं। इसमें उनकी कुछ लम्बी कविताएँ ली गई हैं जिनका विषय हिन्दी सिनेमा, उसके नायक-महानायक, सपनों की उस नगरी के भीतरी यथार्थ, उसके आदर्श, समाज के साथ उसके रिश्तों पर उन्होंने एक ख़ास तरंग में अपनी अनुभूतियों को बुना है। कह सकते हैं कि यह हिन्दी फिल्मों के स्याह-सफ़ेद की काव्यात्मक व्याख्या है, जिसे पढ़ने का अपना आनन्द है। इसे पढ़ते हुए हमें सूचनाएँ भी मिलती हैं और विचार भी। इसमें फ़िल्म पत्रकारिता का स्वाद भी है और कविता भी।
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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2019
Edition Year 2019, 1st Ed.
Pages 96P
Price ₹350.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1.5
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Prahlad Agarwal

Author: Prahlad Agarwal

प्रह्लाद अग्रवाल

यायावर, आवारा मिज़ाज। संगीत, साहित्य और सिनेमा से गहरी आशिक़ी। पिछले तीन दशकों में बहुआयामी लेखन। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरन्तर प्रकाशन।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘हिन्दी कहानी : सातवाँ दशक’ (आलोचना); ‘तानाशाह’ (उपन्यास); ‘राजकपूर : आधी हक़ीक़त आधा फ़साना’, ‘प्यासा : चिर अतृप्त गुरुदत्त’, ‘कवि शैलेन्द्र : ज़िन्दगी की जीत में यक़ीन’, ‘उत्ताल उमंग : सुभाष घई की फ़िल्मकला’, ‘बाज़ार के बाजीगर : इक्कीसवीं सदी का सिनेमा’, ‘ओ रे माँझी... : बिमलराय का सिनेमा’, ‘जुग-जुग जिए मुन्नाभाई : छवियों का मायाजाल’, ‘रेशमी ख़्वाबों की धूप-छाँव : यश चोपड़ा का सिनेमा’, ‘महाबाज़ार के महानायक’ (कविता/सिनेमा)।

‘प्रगतिशील वसुधा’ के बहुचर्चित फ़िल्म विशेषांक ‘हिन्दी सिनेमा : बीसवीं से इक्कीसवीं सदी तक’ का सम्पादन एवं कई पुस्तकों के सहयोगी लेखक।

शासकीय स्वशासी महाविद्यालय में प्राध्यापक-पद से सेवानिवृत्त।

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