Lahooluhan Afganistan

History
Translator: Mukesh Kumar
You Save 30%
Out of stock
Only %1 left
SKU
Lahooluhan Afganistan

अफ़ग़ानिस्तान की भौगोलिक संरचना उसकी स्थिति को अनूठा बनाती है। सभ्यता की शुरुआत से ही ये विभिन्न क़ाफ़िलों के आने-जाने का मार्ग रहा है। जो भी सुदूर पूर्व या भारत के जंगलों तथा नदियों की तरफ़ जाना चाहता, उसे अफ़ग़ानिस्तान की घाटियों तथा पहाड़ियों को ज़रूर पार करना पड़ता। एशिया और यूरोप, अरब दुनिया और दक्षिण एशिया और मध्य एशिया एवं पश्चिम एशिया के बीच स्थित होने की वजह से ये हर किसी को लुभाता है।

क्या तालिबान के हटने तथा नई सत्ता के आने से ये लोभ-लालच ख़त्म होगा? पाँच साल के तालिबान शासन ने अफ़ग़ानिस्तान को सदियों पीछे ढकेल दिया है। शासकों ने बामियान की बौद्ध मूर्तियों के रूप में अपनी अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर खो दी। ये एक तरह से द्वेष में आकर अपनी ही नाक काट लेने जैसा था, क्योंकि दुनिया ने तालिबान के तौर-तरीक़ों तथा विश्व आतंकवाद के निर्माता के रूप में उसे नामंज़ूर कर दिया था। काबुल के संग्रहालय को प्रसिद्ध गांधार चित्रों तथा प्रतिमाओं से वंचित कर दिया गया।

कम्युनिस्ट शासन के दौरान महिलाओं को काम करने की पूरी आज़ादी थी, मगर अफ़ग़ानिस्तान इस स्थिति से उस स्थिति में ले जाया गया जहाँ तालिबान का राज था और जिसमें महिलाएँ दरवाज़ों के पीछे क़ैद कर दी गईं। स्कूल-कॉलेज तथा कामकाज की जगहों से हटाकर उन्हें बलात्कार के लिए छोड़ दिया गया। अपने समूचे ख़ूनी इतिहास में सम्भवतः एक बरबाद समाज ने सबसे ज़्यादा विधवाएँ और अनाथ देखे। इससे भी बुरा ये हुआ कि जो भी पढ़ा-लिखा था और मुल्क से जा सकता था, वो अपनी ज़िन्दगी की हिफ़ाज़त के लिए चला गया। क्या उनमें से कुछ लोग वापस लौटेंगे? उम्मीद करनी चाहिए कि लौटेंगे, मगर कुछ समय के बाद ही क्योंकि आज की हालत डरावनी है।

अब इतिहास ने अफ़ग़ानिस्तान को एक और मौक़ा प्रदान किया है। विश्व बिरादरी के लिए भी ये एक अवसर है जब वो अफ़ग़ानिस्तान में एक सामूहिक भूमिका अदा कर सकती है। अफ़ग़ानिस्तान के अतीत और वर्तमान पर एक अनिवार्यतः पठनीय पुस्तक।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2002
Edition Year 2002, Ed. 1st
Pages 232p
Translator Mukesh Kumar
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
Write Your Own Review
You're reviewing:Lahooluhan Afganistan
Your Rating

Editorial Review

It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using 'Content here

Author: Shridhar Rao

श्रीधर राव

श्रीधर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान, नई दिल्ली में वरिष्ठ फ़ेलो हैं। उन्होंने 1983 में नेशनल डिफ़ेस कॉलेज, नई दिल्ली से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वे प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के वुडरो विल्सन स्कूल ऑफ़ पब्लिक एंड इंटरनेशनल अफ़ेयर्स (1978–79) और आस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी, कैनबरा के स्ट्रेटजिक एंड डिफ़ेंस स्टडीज़ सेंटर (1981–1982) में विज़िटिंग फ़ेलो रहे। तालिबान परिघटना पर उनकी दो पुस्तकें हैं—‘तालिबान एंड द अफग़ान टर्माइल’ (1997 में सम्पादित) और ‘अफग़ान टर्माइल : चेंजिंग इक्वेशंस’ (1998, सह लेखक)। दक्षिण एशिया पर उनके द्वारा लिखी गई किताबें—‘पाकिस्तान : अ विदरिंग स्टेट?’ (सह-लेखक, 1999) और ‘पाकिस्तान बम एंड पाकिस्तान आफ़्टर जिया’ बेहद चर्चित रही हैं। इसके अलावा फ़ारस की खाड़ी पर भी उनकी पैनी नज़र रही है जो उनकी पुस्तकों—‘गल्फ : स्क्रेम्बल फ़ॉर सिक्योरिटी’, ‘टंकरवार तथा इराक़ ईरान वार’ में बख़ूबी ज़ाहिर हुई है। वे विकासशील देशों के प्रमुख सामरिक विश्लेषकों में से हैं।

Read More
Books by this Author

Back to Top