Katha Surinaam-Hard Cover

Author: Pushpita
Special Price ₹590.75 Regular Price ₹695.00
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ISBN:9788171198368
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9788171198368
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कैरेबियन देशों के बीच सूरीनाम भारतीयता का ज्योति- स्तम्भ है। 1873 से 1916 के बीच यहाँ आए भारतवंशी आप्रवासियों ने अपने श्रम से इस देश के सौन्दर्य और गौरव को नए सिरे से अन्वेषित किया। आज यहाँ क्रियोल, बुश नीग्रो, जावानीज, इंडोनेशियाई, चीनी और अमेरिकी नागरिकों के साथ चालीस प्रतिशत जनसंख्या भारतवासियों की है, जो विभिन्न माध्यमों से भारतीयता और भारतीय संस्कृति की प्रतिष्ठापना में संलग्न हैं। साहित्य भी इन्हीं माध्यमों में से एक है जिसकी रचना रोमन लिपि में लिखी जाने वाली सरनामी हिन्दी में की जाती है। सरनामी साहित्य का विकास मुख्यतः दो विधाओं, कविता और कथा में हुआ है। नाटक जैसे शिल्प में लिखी जाने वाली इन कथाओं की विषयवस्तु समाज सुधार और दैनिक जीवन की समस्याओं से ली जाती है, या फिर इनमें भारतीय मिथकों का रूपायन किया जाता है। इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ एक ओर जहाँ सूरीनाम-वासी भारतवंशियों के जीवन, चिन्तन और विश्वदृष्टि का परिचय देती हैं, वहीं उनसे उनके भारत-प्रेम की झलक भी मिलती है।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2003
Edition Year 2023, Ed. 2nd
Pages 184p
Price ₹695.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 2
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Author: Pushpita

पुष्पिता का जन्म कानपुर, उत्तर प्रदेश (भारत) में हुआ। उनकी राष्ट्रीयता नीदरलैंड की है। उन्होंने एम.ए. (हिन्दी) व ‘आधुनिक काव्यालोचन की भाषा’ विषय पर शोध किया।

2001-2005 तक सूरीनाम स्थित भारतीय राजदूतावास की प्रथम सचिव एवं ‘भारतीय संस्कृति केन्द्र’, पारामारिबो में हिन्दी की प्रोफ़ेसर रहीं। इसके पूर्व बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के बसंत कॉलेज फ़ॉर वुमेन में हिन्दी विभागाध्यक्ष थीं। 2006 से नीदरलैंड स्थित ‘हिन्दी यूनिवर्स फ़ाउंडेशन’ की निदेशक और बांग्ला, फ़्रेंच, हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी व डच भाषाओं की जानकार पुष्पिता एनसीईआरटी में पाठ्यक्रम निर्धारण समिति की सदस्य भी रहीं। 2010 में गठित ‘अन्तरराष्ट्रीय भारतवंशी सांस्कृतिक परिषद’ की महासचिव रहीं।

उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं—‘गोखरू’, ‘जन्म’ , ‘कंत्राकी बागान और अन्य कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘अक्षत’, ‘शब्द बनकर रहती हैं ऋतुएँ’, ‘ईश्वराशीष’, ‘हृदय की हथेली’, ‘अन्तर्ध्वनि’, ‘देववृक्ष’, ‘शैल प्रतिमाओं से’ (कविता-संग्रह); ‘आधुनिक हिन्दी काव्यालोचना के सौ वर्ष’ (आलोचना); ‘संस्कृति, भाषा और साहित्य’ ( विद्यानिवास मिश्र से साक्षात्कार); ‘श्रीलंका वार्ताएँ’, ‘स्कूलों के नाम पत्र’—भाग 2 (जे. कृष्णमूर्ति), ‘काँच का बक्सा’ (नीदरलैंड की परीकथाएँ) (अनुवाद); ‘कविता सूरीनाम’, ‘कथा सूरीनाम’, ‘दोस्ती की चाह के बाद’, ‘जीत नराइन की कविताएँ’, ‘दादा धर्माधिकारी की सूक्तियाँ’; ‘सर्वोदय दैनन्दिनी’; ‘परिसंवाद’ (कृष्णमूर्ति के दर्शन पर आधारित त्रैमासिक), ‘सर्वोदय’ (सम्पादन)। ‘हिन्दीनामा’ और ‘शब्द शक्ति’ पत्रिकाओं के प्रकाशन की शुरुआत व अतिथि सम्‍पादन किया। ‘हिन्दीनामा प्रकाशन संस्थान’ तथा ‘साहित्य मित्र’ संस्था की स्थापना की।

उन्हें ‘पद्भूषण मोटुरि सत्यनारायण सम्मान’, ‘अन्तरराष्ट्रीय अज्ञेय साहित्य सम्मान’, ‘सूरीनाम राष्ट्रीय हिन्दी सेवा पुरस्कार’, ‘शमशेर सम्मान’ समेत अन्य कई सम्मानों से सम्मानित किया गया।

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