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Pushpita

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पुष्पिता का जन्म कानपुर, उत्तर प्रदेश (भारत) में हुआ। उनकी राष्ट्रीयता नीदरलैंड की है। उन्होंने एम.ए. (हिन्दी) व ‘आधुनिक काव्यालोचन की भाषा’ विषय पर शोध किया।

2001-2005 तक सूरीनाम स्थित भारतीय राजदूतावास की प्रथम सचिव एवं ‘भारतीय संस्कृति केन्द्र’, पारामारिबो में हिन्दी की प्रोफ़ेसर रहीं। इसके पूर्व बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के बसंत कॉलेज फ़ॉर वुमेन में हिन्दी विभागाध्यक्ष थीं। 2006 से नीदरलैंड स्थित ‘हिन्दी यूनिवर्स फ़ाउंडेशन’ की निदेशक और बांग्ला, फ़्रेंच, हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी व डच भाषाओं की जानकार पुष्पिता एनसीईआरटी में पाठ्यक्रम निर्धारण समिति की सदस्य भी रहीं। 2010 में गठित ‘अन्तरराष्ट्रीय भारतवंशी सांस्कृतिक परिषद’ की महासचिव रहीं।

उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं—‘गोखरू’, ‘जन्म’ , ‘कंत्राकी बागान और अन्य कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘अक्षत’, ‘शब्द बनकर रहती हैं ऋतुएँ’, ‘ईश्वराशीष’, ‘हृदय की हथेली’, ‘अन्तर्ध्वनि’, ‘देववृक्ष’, ‘शैल प्रतिमाओं से’ (कविता-संग्रह); ‘आधुनिक हिन्दी काव्यालोचना के सौ वर्ष’ (आलोचना); ‘संस्कृति, भाषा और साहित्य’ ( विद्यानिवास मिश्र से साक्षात्कार); ‘श्रीलंका वार्ताएँ’, ‘स्कूलों के नाम पत्र’—भाग 2 (जे. कृष्णमूर्ति), ‘काँच का बक्सा’ (नीदरलैंड की परीकथाएँ) (अनुवाद); ‘कविता सूरीनाम’, ‘कथा सूरीनाम’, ‘दोस्ती की चाह के बाद’, ‘जीत नराइन की कविताएँ’, ‘दादा धर्माधिकारी की सूक्तियाँ’; ‘सर्वोदय दैनन्दिनी’; ‘परिसंवाद’ (कृष्णमूर्ति के दर्शन पर आधारित त्रैमासिक), ‘सर्वोदय’ (सम्पादन)। ‘हिन्दीनामा’ और ‘शब्द शक्ति’ पत्रिकाओं के प्रकाशन की शुरुआत व अतिथि सम्‍पादन किया। ‘हिन्दीनामा प्रकाशन संस्थान’ तथा ‘साहित्य मित्र’ संस्था की स्थापना की।

उन्हें ‘पद्भूषण मोटुरि सत्यनारायण सम्मान’, ‘अन्तरराष्ट्रीय अज्ञेय साहित्य सम्मान’, ‘सूरीनाम राष्ट्रीय हिन्दी सेवा पुरस्कार’, ‘शमशेर सम्मान’ समेत अन्य कई सम्मानों से सम्मानित किया गया।

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