Kamayani : Ek Punarvichar-Text Book

Translator: Translator One
₹150.00
ISBN:9788126723058
In stock
SKU
9788126723058
- +

‘कामायनी : एक पुनर्विचार’, समकालीन साहित्य के मूल्यांकन के सन्दर्भ में, नए मूल्यों का ऐतिहासिक दस्तावेज़ है। उसके द्वारा मुक्तिबोध ने पुरानी लीक से एकदम हटकर प्रसाद जी की ‘कामायनी’ को एक विराट फ़ैंटेसी के रूप में व्याख्यायित किया है, और वह भी इस वैज्ञानिकता के साथ कि उस प्रसिद्ध महाकाव्य के इर्द-गिर्द पूर्ववर्ती सौन्दर्यवादी-रसवादी आलोचकों द्वारा बड़े यत्न से कड़ी की गई लम्बी और ऊँची प्राचीर अचानक भरभराकर ढह जाती है।

मुक्तिबोध द्वारा प्रस्तुत यह पुनर्मूल्यांकन बिलकुल नए सिरे से ‘कामायनी’ की अन्तरंग छानबीन का एक सहसा चौंका देनेवाला परिणाम है। इसमें मनु, श्रद्धा और इडा जैसे पौराणिक पात्र अपनी परम्परागत ऐतिहासिक सत्ता खोकर विशुद्ध मानव-चरित्र के रूप में उभरते हैं और मुक्तिबोध उन्हें इसी रूप में आँकते और वास्तविकता को पकड़ने का प्रयास करते हैं। उन्होंने वस्तु-सत्य की परख के लिए अपनी समाजशास्त्रीय ‘आँख’ का उपयोग किया है और ऐसा करते हुए वह ‘कामायनी’ के मिथकीय सन्दर्भ को समकालीन प्रासंगिकता से जोड़ देने का अपना ऐतिहासिक दायित्व निभा पाने में समर्थ हुए हैं।

‘कामायनी : एक पुनर्विचार’ व्यावहारिक समीक्षा के क्ष्रेत्र में एक सर्वथा नवीन विवेचन-विश्लेषण-पद्धति का प्रतिमान है। यह न केवल ‘कामायनी’ के प्रति सही समझ बढ़ाने की दिशा में नई दृष्टि और नवीन वैचारिकता जगाता है, बल्कि इसे आधार-ग्रन्थ मानकर मुक्तिबोध की कविता को और उनकी रचना-प्रक्रिया को भी अच्छे ढंग से समझा जा सकता है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1950
Edition Year 2023, Ed. 15th
Pages 168p
Price ₹150.00
Translator Translator One
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
Write Your Own Review
You're reviewing:Kamayani : Ek Punarvichar-Text Book
Your Rating
Gajanan Madhav Muktibodh

Author: Gajanan Madhav Muktibodh

गजानन माधव मुक्तिबोध

आपका जन्म 13 नवम्बर, 1917 को श्योपुर, ग्वालियर, मध्य प्रदेश में हुआ। आपने नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी से एम.ए. तक की पढ़ाई की।

आजीविका के लिए 20 वर्ष की उम्र से बड़नगर मिडिल स्कूल में मास्टरी आरम्भ करके दौलतगंज (उज्जैन), शुजालपुर, इन्दौर, कलकत्ता, बम्बई, बंगलौर, बनारस, जबलपुर, नागपुर में थोड़े-थोड़े अरसे रहे। अन्तत: 1958 में दिग्विजय महाविद्यालय, राजनांद गाँव में।

आप लेखन में ही नहीं, जीवन में भी प्रगतिशील सोच के पक्षधर रहे, और यही कारण कि माता-पिता की असहमति के बावजूद प्रेम विवाह किया।

अध्ययन-अध्यापन के साथ पत्रकारिता में भी आपकी गहरी रुचि रही। ‘वसुधा’, ‘नया ख़ून’ जैसी पत्रिकाओं में सम्पादन-सहयोग। आप अज्ञेय द्वारा सम्पादित ‘तार सप्तक’ के पहले कवि के रूप में भी जाने जाते हैं। प्रगतिशील कविता और नई कविता के बीच आपकी क़लम की भूमिका अहम और अविस्मरणीय रही जिसका महत्त्व अपने ‘विज़न’ में आज भी एक बड़ी लीक।

आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’, ‘भूरी-भूरी ख़ाक-धूल’, ‘प्रतिनिधि कविताएँ’ (कविता); ‘काठ का सपना’, ‘विपात्र’, ‘सतह से उठता आदमी’ (कहानी); ‘कामायनी : एक पुनर्विचार’, ‘नई कविता का आत्म-संघर्ष’, ‘नए साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र’ (जिसका नया संस्करण अब कुछ परिवर्तित रूप में ‘आख़िर रचना क्यों?’ नाम से प्रकाशित), ‘समीक्षा की समस्याएँ’, ‘एक साहित्यिक की डायरी’ (आलोचना); ‘भारत : इतिहास और संस्कृति’ (विमर्श); ‘मेरे युवजन मेरे परिजन’ (पत्र-साहित्य); ‘शेष-अशेष’ (असंकलित रचनाएँ)। आपकी प्रकाशित-अप्रकाशित सभी रचनाएँ मुक्तिबोध समग्र में शामिल जो आठ खंडों में प्रकाशित।

आपका निधन 11 सितम्बर, 1964 को नई दिल्ली में हुआ।

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top