Kahanikar Premchand : Rachana Drishti Aur Rachana Shilp-Text Book

ISBN: 9788180319129
Edition: 2016, Ed. 3rd
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
₹90.00
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9788180319129
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19वीं सदी का उत्तरार्द्ध हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल का प्रस्थान-बिन्दु है।
पं. रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इस आधुनिक काल को ‘गद्य काल’ की संज्ञा दी है। आधुनिक काल की दूसरी अनेक विशेषताओं के अलावा उसकी एक महत्त्वपूर्ण विशेषता आधुनिक काल में खड़ी बोली गद्य, गद्य-भाषा और गद्य-विधाओं का उदय और विकास है। 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में विज्ञान के विकास तथा औद्योगिक प्रगति के साथ जब छापेख़ाने का आविष्कार हुआ, हिन्दी में समाचार-पत्रों तथा पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। इन पत्र-पत्रिकाओं में ही सबसे पहले गद्य की कहानी, आलोचना, निबन्ध तथा रेखाचित्र जैसी विधाओं ने रूप पाया। अतएव कहा जा सकता है कि गद्य की दूसरी तमाम विधाओं के साथ, आज जिसे हम कहानी या लघु-कहानी के नाम से जानते हैं, वह अपने वर्तमान रूप में 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध की ही देन है।

कहानी एक संक्षिप्त, कसावपूर्ण, कल्पना-प्रसूत विवरण है जिसमें एक प्रधान घटना होती है, और एक प्रमुख पात्र होता है। इसमें एक कथावस्तु होती है जिसका विवरण इतना सूक्ष्म तथा निरूपण इतना संगठित होता है कि वह पाठकों पर एक निश्चित प्रभाव छोड़ता है। कहानी की प्राचीन परम्परा को महत्त्व देने के बावजूद आधुनिक कहानी के बारे में प्रेमचन्द का सुस्पष्ट मत है कि उपन्यासों की तरह आख्यायिका की कला भी हमने पश्चिम से ली है, कम से कम इसका आज का विकसित रूप तो पश्चिम का है ही।

“सबसे उत्तम कहानी वह होती है जिसका आधार किसी मनोवैज्ञानिक सत्य पर हो।...बुरा आदमी भी बिलकुल बुरा नहीं होता। उसमें कहीं देवता अवश्य छिपा होता है, यह मनोवैज्ञानिक सत्य है। उस देवता को खोलकर दिखा देना सफल आख्यायिका लेखक का काम है। प्रेमचन्द अपनी कहानी-चर्चा को आगे बढ़ाते हुए उसमें समस्या प्रवेश को ज़रूरी मानते हैं। किसी समस्या का समावेश कहानी को आकर्षक बनाने का सबसे उत्तम साधन है।”

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Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2006
Edition Year 2016, Ed. 3rd
Pages 232p
Price ₹90.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21 X 13.5 X 1
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Shivkumar Mishra

Author: Shivkumar Mishra

शिवकुमार मिश्र

जन्म : 2 फरवरी, 1931; कानपुर (उ.प्र.)।

शिक्षा : एम.ए. तक की शिक्षा, कानपुर में। पीएच.डी. तथा डी.लिट्. सागर विश्वविद्यालय, सागर, म.प्र. से।

कार्य : सन् 1959 से सन् 1977 तक सागर विश्वविद्यालय में तथा उसके उपरान्त 1991 ई. तक सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभ विद्यानगर (गुजरात) में अध्यापन। भारत सरकार की सांस्कृतिक आदान-प्रदान योजना के तहत 1991 ई. में 15 दिन की सोवियत यूनियन की सांस्कृतिक यात्रा।

जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे।

प्रमुख कृतियाँ : ‘नया हिन्दी काव्य’, ‘प्रगतिवाद’, ‘मार्क्सवादी साहित्य-चिन्तन’, ‘यथार्थवाद’, ‘प्रेमचंद : विरासत का सवाल’, ‘आचार्य शुक्ल और हिन्दी आलोचना की परम्परा’, ‘भक्ति आन्दोलन और भक्ति काव्य’, ‘मार्क्सवाद देवमूर्तियाँ नहीं गढ़ता’, ‘आधुनिक कविता और युग-सन्दर्भ’, ‘इतिहास, साहित्य और संस्कृति’ सहित साहित्य-समीक्षा से सम्बन्धित कई पुस्तकों का लेखन। साहित्य-समीक्षा से सम्बन्धित आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी की चार पुस्तकों तथा विदेशी लेखकों की चार पुस्तकों का सम्पादन-पुनःप्रस्तुति।

पुरस्कार : ‘मार्क्सवादी साहित्य-चिन्तन’ पुस्तक पर सन् 1975 ई. में ‘सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड’।

निधन : 21 जून, 2013

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