आधुनिक पंजाबी कविता में अपनी तरह के अकेले कवि हरिभजन सिंह की कविताओें के इस संकलन को उनकी प्रतिनिधि रचनाओं का संकलन भी कहा जा सकता है। उनके पहले कविता-संग्रह ‘लासां’ (1956) से लेकर ‘मत्था दीवे वाला’ (1982) तक के सात संग्रहों से चुनी गईं ये कविताएँ उनके कवि-व्यक्तित्व को काफ़ी कुछ सामने ले आती हैं। साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत ‘ना धुप्पे ना छाँवे’ शीर्षक संग्रह की कविताएँ भी इस पुस्तक में संकलित हैं।
गहरे अर्थों में सामाजिक और स्वानुभूति के प्रति अत्यन्त सजग उनके कवि-व्यक्तित्व के बारे में इस चयन की सम्पादक गगन गिल ठीक ही कहती हैं कि उनकी अधिकांश कविता आत्मालाप होते हुए भी अकेले आदमी की कविता नहीं, उसमें कोई है, जो सदा उपस्थित है।
हरिभजन सिंह की कविता में व्यक्ति-मन से टकराते सामाजिक आलोड़न की प्रतिध्वनियाँ इतने प्रामाणिक रूप में सुनाई देती हैं कि स्वातंत्र्योत्तर भारत की आधी सदी का मोटा-मोटी एक ख़ाका हमारी चेतना में बन जाता है—ख़ाका उस यातना का जिसे इतिहास नहीं, कविता ही समझ और प्रकट कर सकती है। बांग्लादेश निर्माण के दौरान बहा ख़ून, आपातकाल, पंजाब का उग्रवाद, ऑपरेशन ब्लूस्टार और परमाणु हथियारों जैसी हर पल मौजूद विपदा को उन्होंने अपनी कविताओं में लगातार सम्बोधित किया है।
वे आवेग के कवि नहीं हैं, उनकी कविता रुककर अपने समय की पड़ताल करती है, और इस तरह उनका सघन और चिन्तनशील मनीषी काव्य-मन एक दीर्घकालीन प्रभाव के रूप में हम तक पहुँचता है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Translator | Gagan Gill |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2024 |
Edition Year | 2024, Ed. 1st |
Pages | 208p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 2 |