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Haribhajan Singh

Haribhajan Singh

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हरिभजन सिंह

हरिभजन सिंह का जन्म 8 अगस्त, 1920 को असम के लुमडिंग ज़िले में हुआ था। छुटपन में ही माता-पिता चल बसे। स्कूल और कॉलेज की पढ़ाई लाहौर में हुई। अंग्रेज़ी और हिन्दी में एम.ए. किया। गुरुमुखी में प्राप्त मध्यकालीन हिन्दी काव्य का आलोचनात्मक अध्ययन कर पी-एच.डी. प्राप्त की। 1951 से 1967 तक गुरु तेगबहादुर खालसा कॉलेज, दिल्ली के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक रहे। बाद में आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय में पंजाबी के प्रोफ़ेसर रहे। 1984 में सेवानिवृत्त हुए।

उनके प्रमुख कविता-संग्रह हैं—‘लासां’, ‘तार तुपका’ ‘अधरैणी’, ‘न धुप्पे ना छावें’, ‘मैं जो बीत गया’, ‘इक परदेसन प्यारी’, ‘लहराँ नूँ जिन्दरे मारीं’, ‘मेरी काव्य यात्रा’, ‘चौथे दी उडीक’, ‘रूख ते रिशि’, ‘अलविदा तों पहलां’।  निबन्ध, आलोचना आदि विधाओं में भी महत्त्वपूर्ण लेखन। भारतीय एवं विदेशी भाषाओं की कई कृतियों का उन्होंने पंजाबी में अनुवाद किया।

उन्हें ‘साहित्य कला परिषद पुरस्कार’, ‘पंजाब राज्य शिरोमणि पुरस्कार’, ‘सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार’, ‘कबीर सम्मान’, ‘वारिस शाह पुरस्कार’ और 1964 के ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से पुरस्कृत और साहित्य अकादेमी के सर्वोच्च सम्मान ‘महत्तर सदस्यता’ से सम्मानित किया गया।

21 अक्टूबर, 2002 को उनका निधन हुआ।

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