‘गुलरा के बाबा’ संग्रह की कहानियों का समय आज़ादी के ठीक बाद का है। सामाजिक सन्दर्भों का वास्तविक चित्रण कहानियों का प्रमुख तत्त्व है। जीवन का सुख-दु:ख ही कहानियों का विषय है। भारत के नए निर्माताओं के सामने देश की वास्तविक तस्वीर कहानियों में प्रस्तुत की गई है। कहानियों में कोमल संवेदनाएँ, लुभावनी भाषा के साथ आक्रोश से भरी तीखी सामाजिक दृष्टि भी है। गाँव के जीवन का नया धरातल इस संग्रह का प्राण है। यहाँ जीवन की वास्तविकता के साथ उसमें परिवर्तन की आकांक्षा साथ-साथ है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2016 |
Edition Year | 2024, Ed. 2nd |
Pages | 139P |
Translator | Not Selected |
Editor | Virendra Yadav |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 1 |