'अग्निबीज' में प्रस्तुत कथा-योजना का समय स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद का है। उत्तर भारत के सामाजिक-राजनैतिक जीवन और यहाँ की असह्‌य वर्ण व्यवस्था का उस पर प्रभाव इस उपन्यास का मुख्य विचार तत्व है। इसी कारण इसके नायक तीन ऐसे पात्र बनाए गए हैं जो अल्पवय हैं और पिछड़ी तथा निचली जातियों से आते हैं। श्यामा, जो एक विक्षिप्त स्वतंत्रता सेनानी की कन्या है, इन बाल पात्रों में सर्वाधिक जागृत है। श्यामा के पिता को, स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान पुलिस की लाठियों और यातनाओं गूँगा बना दिया है। उनका भाई उनकी कृति और त्याग का पूरा फ़ायदा उठाता है और राजनीति तथा सामाजिक जीवन में निरन्तर लन्द-फन्द करके एक महत्‍त्‍वपूर्ण कांग्रेस नेता बन जाता है। 'अग्निबीज' का सत्य उत्तर भारत के ग्रामीण जीवन का ऐसा मुखर सत्य है जिसके कारण उच्च जातियों के बुद्धजीवियों और आलोचकों ने इस उपन्यास के विचार तत्व को एक रूप तले दबाने का प्रयत्न किया लेकिन इसके व्यापक प्रभाव को रोक पाना, उनके लिए सम्भव नहीं हो पाया। उपन्यास सारे देश में पढ़ा एवं सराहा गया और उसे अनेक विश्वविद्यालय अपने पाठ्यक्रमों में पढ़ा रहे हैं। 'अग्निबीज’ की मुख्य उपलब्धि उसमें वर्णित उत्तर भारत के गाँवों का सामाजिक जीवन है। पिछड़ी जातियों और हरिजनों के दुःखद और यातनामय जीवन की जैसी झाँकी 'अग्निबीज' में चित्रित है, उसका दर्शन प्रेमचन्द को छोड़कर किसी अन्य कथाकार के यहाँ उपलब्ध नहीं है। ख़ुशी की बात तो यह है कि ‘अग्निबीज’ का सत्य स्वतंत्रता प्राप्ति के इतने वर्षों बाद पुन: उजागर हो रहा है। समाज के उपेक्षित वर्ण जागृत होकर देश की मुख्यधारा में शामिल हो रहे हैं। उन्होंने सामाजिक-राजनीतिक जीवन में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2015
Pages 187p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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You're reviewing:Agnibeej
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Markandey

Author: Markandey

मार्कण्डेय

2 मई, 1930 में गाँव—बराई, ज़‍िला—जौनपुर में जन्मे मार्कण्डेय की प्राथमिक शिक्षा गाँव में हुई। उन्‍होंने आगे की पढाई प्रतापगढ़ और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अर्जित की।

मार्कण्डेय गहरे अर्थों में भारतीय सामाजिक चेतना के एक विरल कथाकार हैं। उन्होंने अपनी कहानी का आरम्भ वहीं से किया जहाँ प्रेमचन्द ने कहानी को छोडा था। प्रेमचन्द की ही तरह मार्कण्डेय भी मूलत: देशज संवेदना के कथाकार हैं। प्रेमचन्द की परम्परा से मार्कण्डेय का रिश्ता महज़ ग्रामीण यथार्थ का ही न होकर उस समूचे सामाजिक ताने-बाने का भी है जिसके बिना न तो किसी पारम्परिक समाज को समझा जा सकता है और न उसके आगत की आहटें सुनी जा सकती हैं। मार्कण्डेय देश के राजनीतिक जनतंत्र का उत्सवीकरण करने के बजाय अपनी कहानियों में उसका सामाजिक और आर्थिक क्रिटीक रचते हैं।

प्रमुख कृतियाँ—उपन्यास—'सेमल के फूल', ‘अग्निबीज’; ‘पानफूल’, ‘हंसा जाई अकेला’, ‘महुए का पेड़’, ‘भूदान’, ‘माही’, ‘सहज और शुभ’, ‘बीच के लोग’, ‘हलयोग’; एकांकी-संग्रह—‘पत्थर व परछाइयाँ’; काव्य-संग्रह—'सपने तुम्हारे थे', ‘यह पृथ्वी तुम्हें देता हूँ’; आलोचना—‘कहानी की बात’, ‘नयी कहानी : यथार्थवादी नजरिया’, ‘प्रगतिशील साहित्य की ज़ि‍म्मेदारी’; ‘कल्पना’ में चक्रधर नाम से लिखा गया स्तम्भ ‘चक्रधर की साहित्यधारा' (साहित्य-संवाद) आदि। प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका ‘कथा’ का सम्‍पादन।  

निधन : 18 मार्च, 2010 ।

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