Gandhi Aur Samaj-Hard Back

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गांधी के जीवन और विरोधाभासों को देखें तो कहा जा सकता है कि उनका व्यक्तित्व और दर्शन एक सतत बनती हुई इकाई था। एक निर्माणाधीन इमारत जिसमें हर क्षण काम चलता था। उनका जीवन भी प्रयोगशाला था, मन भी। एक अवधारणा के रूप में गांधी उसी तरह एक सूत्र के रूप में हमें मिलते हैं जिस तरह मार्क्स; यह हमारे ऊपर है कि हम अपने वर्तमान और भविष्य को उस सूत्र से कैसे समझें।

यही वजह है कि गोली से मार दिए जाने, बीच-बीच में उन्हें अप्रासंगिक सिद्ध करने और जाने कितनी ऐतिहासिक ग़लतियों का ज़‍िम्मेदार ठहराए जाने के बावजूद वे बचे रहते हैं; और रहेंगे। उनकी हत्या करनेवाली ताक़तों के वर्चस्व के बाद भी वे होंगे। वे कोई पूरी लिखी जा चुकी धर्म-पुस्तिका नहीं हैं, वे जीने की एक पद्धति हैं जिसका अन्वेषण हमेशा जारी रखे जाने की माँग करता है।

‘पहला गिरमिटिया’ लिखकर गांधी-चिन्तक के रूप में प्रतिष्ठित हुए, वरिष्ठ हिन्दी कथाकार गिरिराज किशोर ने अपने इन आलेखों, वक्तव्यों और व्याख्यानों में उन्हें अलग-अलग कोणों से समझने और समझाने की कोशिश की है। ये सभी आलेख पिछले कुछ वर्षों में अलग-अलग मौक़ों पर लिखे गए हैं; इसलिए इनके सन्दर्भ नितान्त समकालीन हैं; और आज की निगाह से गांधी को देखते हैं। इन आलेखों में ‘व्यक्ति गांधी’ और ‘विचार गांधी’ के विरुद्ध इधर ज़ोर पकड़ रहे संगठित दुष्प्रचार को भी रेखांकित किया गया है; और उनके हत्यारे को पूजनेवाली मानसिकता की हिंस्र संरचना को भी चिन्ता व चिन्तन का विषय बनाया गया है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2019
Edition Year 2019, Ed. 1st
Pages 167p
Price ₹595.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22.5 X 14 X 1.5
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Giriraj Kishore

Author: Giriraj Kishore

गिरिराज किशोर

जन्म : 1937, मुज़फ़्फ़रनगर (उ.प्र.)। शिक्षा : एम.एस.डब्ल्यू.। 1995 में दक्षिण अफ्रीका एवं मॉरीशस की यात्रा। प्रकाशित कृतियाँ : ‘बा’, ‘लोग’, ‘चिड़ियाघर’, ‘जुगलबन्दी’, ‘दो’, ‘तीसरी सत्ता’, ‘दावेदार’, ‘यथा-प्रस्तावित’, ‘इन्द्र सुनें’, ‘अन्तर्ध्वंस’, ‘परिशिष्ट’, ‘यात्राएँ’, ‘ढाईघर’, ‘गिरमिटिया’ (उपन्यास); ‘नीम के फूल’, ‘चार मोती बेआब’, ‘पेपरवेट’, ‘रिश्ता और अन्य कहानियाँ’, ‘शहर-दर-शहर’, ‘हम प्यार कर लें’, ‘गाना बड़े गुलाम अली खाँ का’, ‘जगत्तारणी’, ‘वल्दरोजी’, ‘आन्द्रे की प्रेमिका और अन्य कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘नरमेध’, ‘घास और घोड़ा’, ‘प्रजा ही रहने दो’, ‘जुर्म आयद’, ‘चेहरे-चेहरे किसके चेहरे’, ‘केवल मेरा नाम लो’, ‘काठ की तोप’ (नाटक); ‘ग़ुलाम-बेगम-बादशाह’ (एकांकी-संग्रह); ‘कथ-अकथ’, ‘लिखने का तर्क’, ‘संवाद सेतु’, ‘सरोकार’ (निबन्‍ध-संग्रह)। सम्मान : हिन्दी संस्थान उत्तर प्रदेश का नाटक पर 'भारतेन्दु पुरस्कार’; मध्य प्रदेश साहित्य परिषद का ‘परिशिष्ट’ उपन्यास पर 'वीरसिंह देव पुरस्कार’; उत्तर प्रदेश हिन्दी सम्मेलन द्वारा 'वासुदेव सिंह स्वर्ण पदक’; 1992 का 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार’; 'ढाईघर’ के लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा 'साहित्य भूषण सम्मान’; ‘महात्मा गांधी सम्मान’, हिन्दी संस्थान, उत्तर प्रदेश; 'व्यास सम्मान’, के.के. बिड़ला न्यास, नई दिल्ली; 'जनवाणी सम्मान’, हिन्दी सेवा न्यास, इटावा। निधन : 9 फरवरी, 2020

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