Dosti Ke Chhah

Author: Jit Narain
You Save 15%
Out of stock
Only %1 left
SKU
Dosti Ke Chhah

दोस्ती की चाह अनेक देशों के नागरिकों की मातृभूमि बना हुआ सूरीनाम देश एक बहुजातीय, बहुसांस्कृतिक और बहुभासी देश है। सूरीनाम देश की राजषाभा डच है लेकिन अंग्रेज़ी, स्रानांग तोंगो, स्पेनिश, जावानीज़ और सरनामी इस देश के लोक व्यवहार और रोज़मर्रा की जीवन्त बोली-भाषाएँ हैं। इसीलिए कई देशों के निवासियों का संग्रहालय होने के कारण यह उनकी मातृभाषाओं का भी संग्रहालय
है।

सरनामी हिन्दी के प्रथम कवि जीत नाराइन ने कोलम्बिया में सन् 2001 ई. में हॉलैंड के रॉत्तर्दाम में आयोजित हुए पोयट्री इंटरनेशनल में सरनामी कवि के रूप में हिस्सा लिया। सन् 2002 ई. में कोलम्बिया में विश्व कविता सम्मेलन में सरनामी हिन्दी भाषा की कविता का प्रतिनिधित्व किया। सन् 2002 ई. में सूरीनाम देश के राष्ट्रपति श्री आर.आर. फ़ेनेत्शियान की ओर से सरनामी भाषा और साहित्य के लिए राष्ट्रपति सम्मान से अलंकृत हुए। 5 जून, 2003 ई. में सूरीनाम के आप्रवासी भारतवंशियों के एक सौ तीस वर्ष पूर्ण होने की स्मृति में आयोजित सातवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के सम्मान-समारोह में अन्य देशों के साहित्य-सेवियों के साथ सरनामी हिन्दी भाषा और कवि के रूप में सम्मानित किए गए। इनका मानना है कि “सरनामी हिन्दी और हिन्दी की आधार शब्दावली एक-सी ही है, सिर्फ़ व्याकरण में अन्तर है...जो स्वाभाविक है। दो दिखनेवाली भाषाएँ मूलतः एक हैं, इनका स्रोत और प्राण एक ही है।”

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2004
Edition Year 2004, Ed. 1st
Pages 204p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.8
Write Your Own Review
You're reviewing:Dosti Ke Chhah
Your Rating

Author: Jit Narain

जीत नाराइन

7 अगस्त, 1948 को सूरीनाम देश में पैदा हुए कवि जीत नाराइन ने अपने विद्यार्थी जीवन में डच और अंग्रेज़ी के साथ स्पैनिश तथा जर्मन भाषा की भी सात वर्षों तक पढ़ाई की और अपने पुरखों के संघर्ष को, सरनामी को अपनी अन्तरात्मा में विकसित करते हुए उसे अपने आचरण-जीवन की भाषा बनाया।

उन्होंने हॉलैंड में (1969-1978 ई.) चिकित्साशास्त्र का अध्ययन किया और 1979 ई. में चिकित्सक के रूप में अपना जीवन शुरू किया। डच और सरनामी हिन्दी में सतत कविताएँ लिखते रहे।

सन् 1983 ई. से सरनामी हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए अकेले अपने ही संसाधनों से पाँच वर्ष तक ‘सरनामी’ पत्रिका प्रकाशित की और उसे हॉलैंड और सूरीनाम के आप्रवासी भारतवंशियों के घर-घर हाथ और डाक से पहुँचाते रहे। मातृभूमि की रक्षा और सम्मान के लिए मातृभाषा सरनामी की फ़सल उगाई और शब्दों के रूप में उसे हर घर में अनाज-सा पहुँचाया।

‘दोस्‍ती की चाह’ समेत अनेक कृतियों के लेखक जीत नाराइन ‘रहमान ख़ान पुरस्कार’, ‘भारतीय प्रवासी पुरस्कार’ (विश्व हिन्‍दी सम्मेलन), ‘ट्रेफ़ोसा पुरस्‍कार’ आदि से सम्‍मानित किए जा चुके हैं।

Read More
Books by this Author
Back to Top