Dastangoi–2

Edition: 2024, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Dastangoi–2
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महमूद फ़ारूक़ी, अनुषा रिजवी और उनके मुटूठी-भर साथियों ने दुनिया को दिखा दिया कि दास्तान अब भी ज़‍िन्दा है, या ज़‍िन्दा की जा सकती है। लेकिन उसके लिए दो चीज़ों की ज़रूरत थी; एक तो कोई ऐसा शख़्स जो दास्तान को बख़ूबी जानता हो और उससे मोहब्बत करता हो। ऐसा शख़्स आज बिलकुल मादूम नहीं तो बहुत ही कामयाब ज़रूर है। दूसरी चीज़ जो अहिया-ए-दास्तान के लिए लाजिम थी, वह था ऐसा शख़्स जो उर्दू ख़ूब जानता हो, फ़ारसी बकदरे-ज़रूरत जानता हो, और उसे अदाकारी में भी ख़ूब दर्क हो, यानी उसे बयानिया और मकालमा को ड्रामाई तीर पर अदा करने पर कुदरत हो। उसे उर्दू अदब की, दास्तान की, और ख़ास कर के हमारी ख़ुशनसीबी तसव्वुर करना चाहिए कि दास्तानगोई के दुबारा जन्म की दास्तान के लिए नागुज़‍िर मोतज़क्किरह वाला किरदार एक वक़्त में और एक जगह जमा हो गए। महमूद फ़ारूक़ी और मोहम्मद काजिम अपनी कही हुई दास्तानों पर मुश्तमिल एक और किताब बाज़ार में ला रहे हैं तो दास्तानगोई का एक जदीद रूप भी सामने आ चुका है।    

–शम्मुर्रहमान फ़ारूकी

 

वक़्त का तक़ाज़ा था कि अमीर हमज़ा के मिज़ाज के अलावा और भी तरह की दास्तानें लोगों को सुनाई जाएँ। इसकी शुरुआत तो 2007 में ही हो गई थी जब मैं और अनुषा ने मिलकर तक़सीम-ए-हिन्द पे एक दास्तान मुरत्तब की थी जो पहली जिल्द में शामिल है। अमीर हमज़ा की दास्तानों का जादू हमेशा सर चढ़कर बोला है और आगे भी बोलता रहेगा। मगर आज के ज़माने में उन दास्तानों के अलावा भी बहुत से ऐसे अफ़साने हैं जो सुनाए जाने का तक़ाज़ा करते हैं। इसलिए रवायती दास्तानों को इख़्तियार करने के साथ-साथ मैंने और ऐसी चीज़ें तशकील दी हैं जिन्हें दास्तानजादियाँ कहें तो नामुनासिब ना होगा। ये दास्तानजादियाँ बिलवासता हमारे अहद को और दीगर सच्चाइयों और पहलुओं पर रोशनी डालती हैं जिन्हें हमारे सामईन और नाज़‍िरीन बेतकल्लुफ़ समझ सकते हैं।

–महमूद फ़ारूकी

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2019
Edition Year 2024, Ed. 2nd
Pages 318p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 2
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Mahmood Farooqui

Author: Mahmood Farooqui

महमूद फ़ारूकी

एक रोड्स स्कॉलर के रूप में भारत और ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में इतिहास का अध्ययन किया। दास्तानगोई, उर्दू में कहने की कला, को पुनर्जीवित करने के लिए सक्रिय। व्यवसायी और शोधकर्ता के साथ सिनेमा, थिएटर, साहित्यिक उर्दू और भारतीय इतिहास में अपने विभिन्न सरोकारों हेतु जाने जाते हैं। कई उपलब्धियों के साथ फीचर फ़‍िल्म ‘पीपली लाईव’ का सह-निर्देशन भी। आपने भारत के प्रमुख समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं में योगदान दिया है। आपने दास्तानगोई के 300 से अधिक शो नई दास्तानों के साथ प्रस्तुत किए हैं।

 

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