Charitani Rajgondanaam

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Charitani Rajgondanaam
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इस पुस्तक में गोंड राजाओं के प्रेरणादायी जीवन-प्रसंगों को रेखांकित किया गया है जिन्होंने अपने समय की तमाम धार्मिक, राजनैतिक और सामाजिक व्यवस्थाओं को आत्मसात् करके, इतिहास के हाशिए से उठकर अपना एक अनूठा साम्राज्य क़ायम किया।

यह पुस्तक हमें राजगोंडों की अद्वितीय जिजीविषा के बारे में विस्तार से बताती है। एक तरफ़ यहाँ अगर गढ़ा-कटंगा के राजा संग्रामशाह की दूरदृष्टि व कूटनीतिज्ञता की झलक मिलती है तो दूसरी तरफ़ शक्तिशाली मुग़ल साम्राज्य से लोहा लेनेवाली रानी दुर्गावती की धर्मपरायणता व साहसिकता भी हमें प्रेरित करती है।

राजगोंड राजाओं के जीवट से देदीप्यमान कहानियों के साथ-साथ यह पुस्तक हमें उनकी मानवीय संवेदना, ज्ञानपिपासा, चारित्रिक दृढ़ता, धर्मनिरपेक्षता, विश्वास, रूढ़ियों और रुचियों के बारे में भी क्रमबद्ध ढंग से बताती है, कुछ इस तरह कि पाँच शताब्दी पूर्व के गोंडों का इतिहास हमारे सामने साकार हो उठता है।

रोचक उतार-चढ़ावों से लबालब और सरल भाषा में सँजोयी गई यह पुस्तक ज्ञानपिपासुओं और इतिहास के गर्त में कुछ ढूँढ़ने का प्रयत्न करनेवाले शोधकर्ताओं के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2008
Edition Year 2008, Ed. 1st
Pages 313p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14.5 X 2
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Shivkumar Tiwari

Author: Shivkumar Tiwari

शिवकुमार तिवारी

जन्म : 1941, जबलपुर।

शिक्षा : विश्वविद्यालयीन परीक्षाएँ (बी.ए., एम.ए.) विशेष योग्यता के साथ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण, ‘नेशनल मेरिट स्कॉलरशिप’, जैवभूगोल में शोधकार्य एवं डॉक्टरेट की उपाधि।

25 वर्षों (1964 से 1990) तक मध्य प्रदेश की महाविद्यालयीन सेवा में भूगोल विषय के सहायक प्राध्यापक एवं प्राध्यापक पदों पर रहकर शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालयों में अध्यापन कार्य। भूगोल, मानवविज्ञान, पर्यावरण, जनजातीय संस्कृति एवं चिकित्सा भूगोल पर मानक ग्रन्थ तथा अनेक शोध पत्र। 13 वर्ष (1990 से 2003) तक रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में जनजातीय अध्ययन विभाग में अध्यक्ष के रूप में कार्यरत। विश्वविद्यालय में कार्य करते हुए बीस पीएच.डी. शोध कार्यों का निर्देशन। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, भारतीय सामाजिक विज्ञान परिषद् तथा मध्य प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् जैसी संस्थाओं द्वारा प्रायोजित क्षेत्रीय शोध परियोजनाओं के निदेशक। भारत सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा अनुदान प्राप्त क्षेत्रीय शोध परियोजनाओं के निदेशक। इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च की शाखा जनजातीय आयुर्विज्ञान शोध संस्थान के मानद सदस्य। हिन्दी भाषा में बारह ग्रन्थों का प्रकाशन जिनमें से छह मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, भोपाल (मध्य प्रदेश शासन) से तथा अन्य निजी प्रकाशन गृहों द्वारा प्रकाशित हुए हैं। अंग्रेज़ी भाषा में बीस ग्रन्थों का प्रकाशन।

प्रकाशित कृतियाँ : नवीन ग्रन्थ ‘ज्याग्राफ़िक बायोज्याग्राफ़ी’ (2007) एवं 'अर्ली मेन ऑफ इंडियन रॉकशेल्टर्स’ (2009)। राजकमल प्रकाशन द्वारा 'चरितानि राजगोंडानाम’ (2008), ‘राजगोंडों की वंशगाथा’ (2012) एवं ‘भारतीय वन्यप्राणियों के संरक्षित क्षेत्रों का विश्वकोष’ (2013) प्रकाशित।

सम्मान : मध्य प्रदेश शासन द्वारा हिन्दी भाषा में विश्वविद्यालयीन स्तर के मानक ग्रन्थों के लेखन हेतु ‘डॉ. शंकरदयाल शर्मा सृजन सम्मान’ (वर्ष 2009) से सम्मानित एवं पुरस्कृत।

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