Bihari Ka Naya Mulyankan-Text Book

Author: Bachchan Singh
₹110.00
ISBN:9788180318368
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9788180318368
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प्रस्तुत पुस्तक में ‘बिहारी सतसई’ का मूल्यांकन करते समय तत्कालीन सामन्तीय परिवेश को बराबर दृष्टि में रखा गया है। बिहारी दरबार में रहते थे, पर उनको दरबारी नहीं कहा जा सकता। उनमें चाटु की प्रवृत्ति नहीं थी, वे वेश-भूषा, रहन-सहन, आन-बान आदि में किसी सामन्त-सरदार से कम न थे, उनका दृष्टिकोण पूर्णतः सामन्तीय था, जो ‘सतसई’ के काव्य तथा शैलीगत सतर्कता और सज्जा में अभिव्यक्त हो उठा है। उनके प्रेम, नारी-सम्बन्धी भाव, गाँव-सम्बन्धी विहार सभी पर सामन्त-कवि की छाप है, दरबारी कवि की नहीं। इस दृष्टिकोण को स्पष्ट करने पर ही ‘सतसई’ का सम्यक् आकलन किया जा सकता था। इसके लिए भी सतसई को ही साक्ष्य माना गया है। इससे सुविधा भी हुई। तत्कालीन परिस्थिति और राजनीतिक स्थिति के नाम पर कहीं से इतिहास के दस-बीस पृष्ठ फाड़कर चिपकाने नहीं पड़े। ‘नयी-समीक्षा’ का आग्रह भी कुछ ऐसा ही है।

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Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2008
Edition Year 2021, Ed. 4th
Pages 183p
Price ₹110.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21 X 13.5 X 1
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Bachchan Singh

Author: Bachchan Singh

बच्चन सिंह

हिन्‍दी साहित्य का दूसरा इतिहास के रूप में हिन्‍दी को एक अनूठा आलोचना-ग्रन्‍थ देनेवाले बच्चन सिंह का जन्म 2 जुलाई, 1919 को जिला जौनपुर के मदवार गाँव में हुआ था।

शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में हुई।

आलोचना के क्षेत्र में आपका योगदान इन पुस्तकों के रूप में उपलब्ध है : क्रान्तिकारी कवि निराला, नया साहित्य, आलोचना की चुनौती, हिन्दी नाटक, रीतिकालीन कवियों की प्रेम-व्यंजना, बिहारी का नया मूल्यांकन, आलोचक और आलोचना, आधुनिक हिन्दी आलोचना के बीज शब्द, साहित्य का समाजशास्त्र और रूपवाद, आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास, भारतीय और पाश्चात्य काव्यशास्त्र का तुलनात्मक अध्ययन तथा हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास।

कथाकार के रूप में आपने लहरें और कगार, सूतो व सूतपुत्रो वा (उपन्यास) तथा कई चेहरों के बाद (कहानी-संग्रह) की रचना की। लगभग एक दशक तक प्रचारिणी पत्रिका के सम्‍पादक रहे।

निधन : 5 अप्रैल, 2008

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